प्रधानमंत्री से 36 और लालू से प्यार मोहब्बत में डूबा गए आलोक वर्मा /

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अनामी शरण बबल

नई दिल्ली एक चर्चित लोकोक्ति है बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। यह  सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर चरितार्थ हो रहा है, कि बेआबरू होकर सीबीआई से निकाले गए आलोक। सीबीआई के इतिहास में निवर्तमान निदेशक पहले और संभवत पहले और आखिरी निदेशक होंगे जो इस अपमानजनक तरीके से इस कदर सीबीआई में लाए और हटाए गए। इनको हटाने के लिए एक तरफ जहां प्रधानमंत्री उतावले थे तो दूसरी तरह 75 दिनों तक सीबीआई से निकाल बाहर रहने के बाद भी अपनी जिद के कारण आलोक अपना रुतबा खो बैठे। कार्यकारी निदेशक     नागेश्वर राव  फिलहाल  सीबीआई का काम संभालेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी की अध्यक्षता वाली हाई पावर कमेटी यानी चयन समिति में विपक्षी दल के नेता मलिकार्जुन खडगे के विरोध के बावजूद सीबीआई निदेशक को बचाया नहीं जा सका।—— सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा एक समय प्रधानमंत्री की पसंद थे। कई वरिष्ठतम अधिकारियों को उपेक्षित करके प्रधानमंत्री मोदी ने आलोक वर्मा इस पद पर आसीन हुए। उस समय विपक्षी दल के नेता मलिकार्जुन खडगे ने आलोक की नियुक्ति का विरोध किया था। भाजपा के बीच आलोक के मीठे संबंधों को लेकर खडगे ने सीबीआई के दुरूपयोग की आशंका जाहिर की थी। उस समय खडगे के विरोध को दरकिनार करते हुए इन्हें सीबीआई का निदेशक बना दिया गया। मगर कुर्सी पाते ही आलोक वर्मा ने रंग रुप चाल चलन चेहरा को ही बदल दिया। एक तरफ़ आलोक वर्मा पूर्व रेल मंत्री लालू यादव के रेल मंत्रालय में किए गए अनियमितता और गड़बड़ी की जांच में सीबीआई निदेशक ने जानबूझ कर मामले को लटकाते रहे। नंबर टू राकेश अस्थाना के साथ खींचतान में आलोक वर्मा इस क़दर घायल हुए कि आपसी लडाई  से विभाग की साख पर बट्टा लगा है। मोइन कुरैशी से दो करोड़ रिश्वत लेने का आरोप लगा,और इस मामले में आज तक सीबीआई के निवर्तमान निदेशक खामोश है।             ———राफेल विमान खरीद मामले की जांच को लेकर सीबीआई में अफवाहों का बाजार गरम है। विपक्षी दलों और कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पर आरोपित किया है।: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि आलोक वर्मा को हटाने के पीछे राफेल सौदे की जांच से सीबीआई को रोकना था। विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खडगे ने भी राफेल मामले में प्रधानमंत्री को संदिग्ध करार दिया। अलबत्ता जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का लाभ तो निदेशक आलोक वर्मा को जरुर मिला, मगर एक सप्ताह के भीतर मुख्य न्यायाधीश विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खडगे और प्रधानमंत्री की तीन सदस्यीय हाई पावर कमेटी चयन समिति ने मात्र 36 घंटे के भीतर सीवीसी के आरोपों के मद्देनजर चयन समिति ने बहुमत के आधार पर विपक्ष के नेता खडगे के विरोध के बावजूद निदेशक को। संवैधानिक तौर पर हटा दिया गया। हालांकि निदेशक ने इसे व्यक्तिगत हमला करार दिया है। जबकि खडगे ने निदेशक को अपमानजनक ढंग से हटाने की कोशिश को  असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया। खडगे ने कहा कि सीबीआई जैसी संस्था के प्रमुख की ऐसी विदाई शर्मनाक है। विरोध के बाबत पूछे जाने पर खडगे ने कहा कि निदेशक की नियुक्ति के समय मेरे विरोध का कारण आलोक वर्मा और संघ की निकटता थी, मगर मुझे क्या पता था कि अपना दामन बचाने के लिए वे लोग निदेशक को ही डूबोने में एकजुट हो गए। उस समय एक इतने वरिष्ठ अधिकारी के साथ हो रहे अपमान का विरोध करना मेरा फ़र्ज़ बन गया। निदेशक आलोक वर्मा के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस तौर तरीकों को राजनीति में अमानवीय करार दिया। उनका मानना है कि आलोक वर्मा के साथ सबसे कमजोर पक्ष  यह है कि उनकी नौकरी केवल 20 दिन की रह गयी है। 31 जनवरी को रिटायर हो रहे आलोक वर्मा को न कोई लाभ होगा और ना ही अब कैरियर में कोई फायदा है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अब सता से टकराने की बजाय रिटायरमेंट और उसके लाभ और पेंशन को पाने की औपचारिकता को निपटाना आवश्यक है। प्रशांत भूषण ने इस मामले पर कहा कि सरकार राफेल मामले में किसी जांच से बचना चाहती थी, जिसको रोकने के लिए निदेशक को रोकना जरूरी था। बहरहाल अब लाख टके का सवाल है कि अगले 20 दिन तक सामान्य ढंग से काटकरहोमगार्ड डीजी बनाए गए आलोक वर्मा क्या 31जनवरी को क्या स सम्मान रिटायर हो पाएंगे?ReplyReply allForward
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