प्रधानमंत्री मोदी का मिशन आरक्षण के मायने / अनामी शरण बबल

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नयी दिल्ली। औरतों के चरित्र के बारे में सर्व प्रचलित जुमला है कि तिरिया चरित्र देवो न जाने। यही जुमला कमोबेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पर भी चरितार्थ होता है। किसी भी तरह के मामले में लोग क्या सोचते हैं इसकी जानकारी के बाबजूद वे परवाह नहीं करते हैं। मगर मोदी के मन में क्या चला रहा है या वे किसी मुद्दे पर मन में दिमाग में क्या खिचड़ी पका रहे हैं इसकी वे परवाह तक नहीं करते और समय आने पर सबों के समक्ष धमाका करना ही इनकी आदत या फितरत है। स्वर्णों को आर्थिक आधार पर दस फीसदी आरक्षण का परमाणु बम संसद में गिराकर सबों को हैरत में डाल देना ही मोदी का चुनावी व्रजास्त्र था, जिसका विस्फोटक संसद में करके सभी दलों सांसदों समेत पूरे देश को अचंभित कर दिया। राज्यसभा में पास होने के लिए इस बिल को आज ही पेश किया जाना है। जिसके बाद इस आरक्षण बिल को कब कैसे किस तरह कितना और किसके लिए लागू किया जाएगा। इन आदि इत्यादि अनंत सवालों और बाधाओं के दौर सेहत दस फीसदी आरक्षण बिल को बाधा दौड़ पार करना बाकी है।   मामला चाहे नोटबंदी का   रहे  या सर्जिकल स्ट्राइवार का सभी मामले में प्रधानमंत्री सर्वसम्मति बनाने या सबकी राय लेकर चलने वाले नेता कभी नहीं रहे हैं। जोख़िम के साथ मामला चुनकर नया रास्ता बनाने की कारवाई करके ही वे सार्वजनिक घोषणा करने में यकीन करते हैं। दो साल पहले नोटबंदी मामला इसका उदाहरण है।  सर्जिकल स्ट्राइक वार के दो साल बाद विजयोत्सव मनाना इनकी एक निराली अदा है। चुनावी नारे को चुनावी जुमला के रुप में बदल डालना भी चुनावी नारे और वायदे का एक नया अवतार है कि इन्होंने सबको जुमलो और मुहावरे में बदल डाला।  सबका साथ सबका विकास का जुमला भी  एक  नया संबोधन संस्करण है। और इसका श्रेय भी प्रधानमंत्री मोदी को ही जाएगा। संसद में विपक्षी दलों की ओर से राफेल सौदे में प्रधानमंत्री पर  सीधा हमला हो रहा है। पिछले 50 साल  से काम कर रहे हेल को हटाकर 50 घंटे का भी अनुभव नहीं रखने वाले अनिल अंबानी  समूह को मेनटेनेंस का हजारों करोड़ का ठेका सौंपने के मामले  में आज़ तक सरकार खामोश है। राफेल विमान की पहले से तय कीमत तिगुना कैसे हो सकती है। कांग्रेस के इन सवालों पर संसद में चर्चा के बाद भी यह  रहस्य रोमांच बरकरार है। सबसे ईमानदार दाग रहित होने के बाद भी कांग्रेस के चौकीदार चोर है का लांछन को साफ नहीं किया जा रहा है।    तो दूसरी तरफ़ सरकार के लिए अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का मुद्दा भी सबसे बड़ा संकट बन गया है। एक माह यानी 12 जनवरी तक इस मामले को सुलझाने के लिए समय मांगने वाली मोदी सरकार  की अग्निपरीक्षा खत्म होने में केवल 72 घंटे ही शेष रह गए हैं। यानी संसद सत्र खत्म होते ही भाजपा समर्थक सभी साधु संत एकबार फिर मोदी और योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए बेताब होंगे। सभी के सामने बेबस मोदी सरकार  को इनको संतुष्ट करने का कोई रास्ता नहीं है। कोर्ट की कार्यवाही से पहले संसद में अध्यादेश लाने से इंकार कर चुके प्रधानमंत्री मोदी ने कोर्ट की सुनवाई के बीच में कोई हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है। जिससे चुनाव के कुछ माह पहले इस धार्मिक उन्मादी माहौल से निपटने के तौर पर भी आरक्षण को देखा जा रहा है।आरक्षण का लाभ किसको किस तरह मिलेगा यह सब भविष्य के गर्भ में है, मगर संसद से लेकर सड़क तक राफेल पर आरक्षण का भारी पड़ना समय का तकाजा है। और स्वर्णों को आरक्षण का  झुनझुनवाला झुनझुना के शोर में ढेरों ज़रुरी मुद्दे भी गायब हो जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी का आरक्षण लव वार भी वोटरों के समक्ष एक सर्जिकल स्ट्राइक ही है। जिसकी अपने सहयोगियों मंत्रीमंडल की सहमति के बगैर ही संसद में पेश किया गया है। जिस तरह स्वर्णों के आरक्षण की घोषणा स्ह सारा देश अचंभित रह गया है, ठीक उसी तरह एनडीए के दस पांच सबसे विश्वस्त सांसदों मंत्रियों के अलावा और किसी को इसकी भनक तक नहीं थी। दस फीसदी आरक्षण का प्रपोजल केवल एक रात में  24 घंटे मेंं  तैयार किया गया था। सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के वरिष्ठतम अधिकारियों ने आर्थिक आधार पर पिछडे इस प्रपोजल को बनाया। इस बारे में वित  होम और दो चार मंत्रियों के अलावा भाजपा सुप्रीमो अमित ह को इसकी जानकारी थी। मंत्रालय के वरिष्ठतम अधिकारियों को प्रधानमंत्री ने रविवार कोह तलब करके मीटिंग में रूपरेखा की जानकारी दी। जिसे सोमवार देर रात तक कैबिनेट नोट तैयार करके रात में ही प्रधानमंत्री को दे दिया। सरकार संविधान संशोधन विधेयक रखना नहीं चाहती थी,मगर इसका फैसला हाई लेवल पर किया गया। मंत्रालय ने इस प्रपोजल कएब लिए आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के मापदंड को रखा। मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बावजूद कानून मंत्रालय में अभी संविधान संशोधन प्रक्रिया में कुछ सुधार बाकी है। तमाम औपचारिकताएं इतनी जल्दी से हल होने तक चुनावी भौसागर खत्म हो जाएगा।  आगे इसका रंगरूप भी बदला सकता है। मगर स्वर्णों को आर्थिक आब पर आरक्षण की गूंज बनी रहेगी। इसके वर्तमान स्वरूप पर सवाल उठाते हुए पहले से आरक्षित वर्गों के लिए और अधिक आरक्षण के स्वर उठने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के इस मास्टर ब्लास्ट से लाभ की अपेक्षा नुकसान की आशंका ज्यादा है, इसके बावजूद मोदी  स्वर्णों में स्वर्ण  बी आर अम्बेडकर जरुर बना गए। जिन्हें लोग हमेशा याद करेंगे। भले ही आरक्षण ब्लास्ट सएह और भी सामयिक मुद्दों से उनको राहत ना मिले।

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