गब्बर सिंह टैक्स की चोट से आहत पतंजलि के लाभांश और खपत में गिरावट / अनामी शरण बबल

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जीएसटी से अभी तक नहीं संभल पाया है पतंजलि का कारोबार  नयी दिल्ली

 योगाचार्य रामदेव की आयुर्वेदिक हर्बल उत्पादक कंपनी पतंजलि  के प्रोडक्ट की खपत में गिरावट दर्ज की गयी है। तमाम भारतीय और मल्टीनेशनल कंपनियों ने पतंजलि के उत्पादों के समानांतर आक्रामक मार्केटिंग का जाल फैला दिया है। जिसके सामने जबरदस्त एडवरटाइजिंग और देश भर में पहले से मौजूद समर्थक उपभोक्ताओ की मौजूदगी के बावजूद  पतंजलि के हर्बल आयुर्वेदिक सामानों की बिक्री में गिरावट आई है। जीएसटी के लागू होने के बाद पतंजलि के ढेरों उत्पाद डिस्ट्रीब्यूशन मोर्चे पर फंसी है।फाइनेंशियल डेटा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2017-18 के अनुसार मांग और खपत में दस फीसदी की गिरावट  के साथ पतंजलि की आमदनी 8135 करोड़ रुपए की रह गयी है, जो पिछले साल 9036 करोड़ रुपए की थी।  पतंजलि कंपनी की स्थापना के बाद यह अबतक का सबसे कमजोर वितीय  प्रदर्शन है। केयर रेटिंग एजेंसी के प्रोविजनल डेटा के अनुसार पिछले साल 2017-18 वित्तीय वर्ष में कंपनी के शुद्ध लाभ में 50% कमी आ गयी है, जो 529 करोड़ है। केयर रेटिंग  रिपोर्ट के अनुसार केवल जीएसटी के चलते ही पतंजलि के टर्न ओवर में भारी गिरावट को माना गया है। गब्बर सिंह टैक्स के अनुसार कंपनी अपने आपको ढाल नहीं सके। सप्लायर चैन को ठोस आकार नहीं दिया जा सकना भी है। पतंजलि के लाभ में तेजी से गिरावट का मुख्य कारण प्रोफिट बिफोर इंटरेस्ट, लीज डेप्रीसिएशन एंड टैक्स मार्जिन में आई कमी थी। कारोबार की तेजी से अनियोजित तरीके से विकसित करने की तेजी से बढ़ती गयी खर्चों का नियोजित रुपरेखा का अभाव भी पतंजलि के बिजनेस की कमी को एकाएक प्रकट कर दिया। जिसके चलते अन्य मार्जिन में औसतन 18.73 % से घटकर 12% हो गया। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि पतंजलि की रफ्तार को देखते हुए आरंभ से ही लग रहा था कि कोई भी झटका को झेलने के लिए इमरजेंसी व्यवस्था का अभाव है। कंपनी द्वारा अलग-अलग प्रोडक्ट के लिए अलग-अलग डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को नियुक्त करने का फैसला भी कारगर नहीं रहा। इंस्टीट्यूशन इक्विटीज की जारी इन्वेस्टर् नोट में पतंजलि के आर्थिक संतुलन और विकास में  सुस्ती का कारण कमजोर ‌ प्रबंधन को माना है। बाजार की कड़ी प्रतिस्पर्धा में  भी एडवरटाइजिंग की एकरूपता से भी बाजार में असर खत्म हो गया। जेफरीन के बाजार विश्लेषकों में तन्मय शर्मा और वरूण लोचव का कहना है कि जिस तेजी के साथ पतंजलि का आगमन हुआ वह टिकाऊ नहीं रह सका। डाबर ने पतंजलि के कारण अपने खोए बाजार और शेयर को भी हासिल कर लिया।  उल्लेखनीय है कि पतंजलि को मिली शुरूआती सफलता ने हर्बल आयुर्वेदिक नेचुरल उत्पादों को जन-जन तक ले जाने के लिए संजीवनी का काम किया है। बाजार विश्लेषकों का यह भी मानना है कि पतंजलि का सबसे सबल पक्ष इसके पहले से इंतजार कर रहे लाखों उपभोक्ता हैं, जिनका पतंजलि पर भरोसा कायम है। जिसके चलते इसका भविष्य बेहतर संकेत दे रहा है।

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