लोजपा के सामने साख बचाने का धर्मसंकट / अनामी शरण बबल

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सीट बंटवारे  में लोजपा के रामविलास पासवान की बल्ले बल्ले  का काला सच  नयी दिल्ली।

विधानसभा चुनाव के परिणामों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन उर्फ एनडीए की सारी अकड़ ही निकाल दी। भाजपा सुप्रीमो अमित शाह जहां पहले मिलने के लिए समय मांगने पर भी समय नहीं देते थे या  मिलने से पहले वे मुलाकाती को इतना शीर्षासन करवा देते थे कि ज्यादातर नेताओं को मिलने का ही चाव बेकार लगने लगता था। वहीं सहयोगी दलों की उपेक्षा करने वाले शाह विधानसभा चुनाव में हार के साथ ही  मन से भी हार गए हैं। अकड़ ढीली पड़ते ही अपने सहयोगियों को साथ रखने के लिए अध्यक्ष शाह  मिमियाने लगे। एनडीए की एकता को बनाए रखने के लिए कल तक सहयोगियों पर भाव नहीं देने वाले अध्यक्ष चारण वंदना करने लगे हैं। इसके बावजूद सहयोगियों ने आंख तरेरना बंद नहीं किया है।——–भाजपा की लाचारी से सबसे अधिक फायदे में बाप बेटे भाई भतीजे घर  परिवार के सदस्यों वाली पार्टी लोजपा रही। रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा को जहां चुनाव परिणाम आने से पहले एनडीए से अपमानजनक ढंग से खदेड़ दिए गए तो चुप्पी साधे लोजपा ने चुनाव परिणाम आते ही बग़ावती तेवर क्या दिखाया कि सरकार और एनडीए में बेभाव पड़े रामविलास पासवान को हर शर्त पर साथ रखने के लिए बेबस हो गयी। चार सीटों पर ही संतुष्ट लोजपा को ही कुशवाहा के हिस्से वाली दो सीट और बोनस में मिल गयी। इसके अलावा कभी सबसे ज्यादा मतों से जीत हासिल करने वाले लोजपा अध्यक्ष पासवान सीधे लोकसभा के लिए मैदान में आकर दो दो हाथ करने की बजाय गुपचुप पिछले दरवाजे से राज्यसभा में जाने के लिए भी भाजपा को राजी करके अपनी शर्तों पर झुका लिया। अपने आपको सेफ करने के बाद जेडीयू  के लिए जमुई सीट छोड़ने के बदले रामविलास पासवान के एक्टर पुत्र चिराग पासवान अपने पिता के परम्परागत विजयी सीट हाजीपुर  से चिराग पासवान का चुनाव में उतरना तय हो गया है।                टिकट वितरण में भले ही बाजी मारने में पासवान सफल रहे हों मगर एनडीए से छह सीट पाने के बाद लोजपा धर्मसंकट में फंस गयी है।  अव्वल एक तो सारा कुनबा मिलाकर भी लोजपा के पास छह ऐसे प्रत्याशी नहीं है जो चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंच सके। संभव है कि लोजपा पर टिकट वितरण में कई तरहा के लांछन भी लगे, फिर भी 2014 की तरह इस बार चार सांसदों का चौका मारना लोजपा के लिए संभव नहीं है। टिकट पाने में सफल रहे पासवान को इस बार इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। पहले की तरह ही निरादर उपेक्षा बेभाव कर दिए जाने के साथ ही यदि एनडीए सता में वापसी कर ली तो इस बार मंत्री बनने के लिए भी रामविलास पासवान को तरसना पड़ सकता है। वैसे भी अपने समर्थकों को संबंधित मंत्रालय के निगमों बोर्डों समितियों में हमेशा रखवाने वाले रामविलास राज में इस बार सारे कार्यकर्ता  उपेक्षित ही रहे। जिससे समर्थकों में भी नाराजगी है। लोजपा दिल्ली प्रदेश सचिव दर्शनलाल ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी की सख्ती के चलते पासवान का रुतबा फीका रहा। उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें पाने के बाद भी लोजपा के निराशाजनक प्रदर्शन से केंद्र में पासवान बेमोल कर दिए गए थे।——- भाजपा से तलाक लेकर लोकसभा चुनाव 2014  में उतरे जेडीयू मुखिया नीतीश कुमार की पार्टी को लोकसभा चुनाव में केवल दो ही सांसद दिल्ली जा सके। फिर भी इस बार जेडीयू को 17 सीटें मिली हैं, जबकि 22 सांसदों वाली भाजपा को इस बार केवल 17 पर ही संतोष करना पड़ा है। ज्यादातर सांसद अपने टिकट कटने की आशंका से असुरक्षित हैं, तो कुछ सांसदों के सूर बदलने लगे हैं। असंतोष कलह भितरघात और भितरघातियों से भी भाजपा मुखिया को टकराना पड़ेगा।  कहा जाता है कि यूपी और बिहार की शतरंजी फतह के बगैर  सता का दरवाजा नहीं खोला जा सकता है। मगर इस बार भाजपा के सहयोगी सुशासन कुमार की लोकप्रियता में भी गिरावट है। मुजफ्फरपुर शेल्टर होम बलात्कार और हत्याकांड में मंत्री मंजू वर्मा और इसके पति के शामिल होने से भी सुशासन कुमार की छवि पर गहरा  आघात लगा है। ााााााााााााााााााााााााााााााााा

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