बुरा न मानो चुनाव है. / अनामी शरण बबल

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1/–– संकट में है सबके संकटमोचन पवनपुत्र हनुमान                     — पवनपुत्र संकटमोचन हनुमान को कौन नहीं जानता है। अयोध्यापति श्री राम के मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में राजनीति  गरम है, मगर श्रीराम के अनन्य भक्त और चहेते हनुमान जी की वंदना करने की बजाय पवनपुत्र को जातियों में बांटने का परचम लहराया जा रहा है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को दलित जाति का क्या बताया कि कोई इन्हें जाट तो कोई गुर्जर  तो कोई वीरता में राजपुताना चौहान तो कोई इन्हें पंडित तक घोषित करना आरंभ कर दिया। मामला यहीं पर नहीं रूका। भाजपा के एक विधायक ने तो यह कहकर संकटमोचक के ही संकट में डाल दिया कि हनुमान मुसलमान थे।  यानी पुरूषोत्तम श्री राम के परम भक्त पवनपुत्र की महिमा का यह बखान। अब बारी हनुमान जी की है कि वे अपने ऊपर आए संकटों को दूर करके सबको बताएं कि आखिरकार पवनपुत्र हनुमान किस जाति गोत्र वर्ण कुल से नाता रखते हैं।
 2/ मौसम मिजाजी रामविलास।         — इसी को कहते है किस्मत। विधानसभा चुनाव से पहले टिकट वितरण को लेकर कुशवाहा फटफटाने क्या लगे कि विजय-रथ पर सवार प्रधानमंत्री और पार्टी सुप्रीमो ने कुशवाहा जी को बेभाव कर दिया। वो भी इतनी बेरूखी से की  एनडीए से अलग होने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं बचा था। मगर विधानसभा चुनाव के परिणाम में  एनडीए की हार के साथ ही सारे तेवर ढीले ढाले से हो गए हैं। लोजपा का यही तेवर एक माह  पहले का होता तो घर परिवार बाप बेटे और भाई तक सीमित लोक कल्याणकारी जनहितकारी पार्टी के भी साथ साथ रखने के लिए भाजपा सुप्रीमो को भी आग्रह करना पड रहा है।  यह जानते हुए भी लोजपा और बिहार के एक्सीडेंटल सीएम रहे मांझी को उम्मीद से अधिक कद्दावर मानकर बिहार में दांव हार चुके हैं। हार की यह बेबसी ही लोजपा की संजीवनी बूटी है? फिर भी क्या पासवान एंड कंपनी क्या ठहर जाएंगे?
 3/ यूपीए‌, ज्यादा जोगी मठ उजाड़ —– तीन राज्यों में विजय के साथ ही कांग्रेस और यूपीए में खासा जोश आ गया है। भूले बिसरे लुटे पीटे भागे और भगाये दलदली दलों और बूझे बूझाए  नेताओं  की यूपीए में शामिल होने की होड़-सी मची है। माना कि 2014 सा माहौल नहीं है। एनडीए में चमत्कार फीका और धुंधला सा गया है। मगर यूपीए गठबंधन में मौसमी नेताओं को बड़ी सावधानी से शामिल करना होगा नहीं तो सता पाते ही दलदली नेता ही दल-दल बनकर सरकार और शासन के सबसे बड़े बाधक बनकर रहना और चलना हराम कर देंगे यानी ज्यादा जोगी साथ साधने से मठ उजड़ने का भी खतरा कायम रहता है।
:4/ टाईगर जिंदा है के मायने  –  मध्यप्रदेश की सता गंवाने के साथ ही  मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का तिलिस्म अभी खत्म नहीं हुआ है। नए बंगला में शिफ्ट होते ही शिवराज पूरे फार्म में हैं।   तेरह साल पहले शिवराज इसी बंगले से निकलकर मुख्यमंत्री बने थे। फिर उसी बंगले में जाकर शिवराज ‌ ने गर्जना भरी कि टाईगर जिंदा है। देखना है कि कहीं चाय के घिसते चमत्कार के विकल्प के तौर पर जादू मंतर टोना टोटका और ग्रह नक्षत्र पूजा पाठ के बाद टाईगर कहीं संघी वरदान से दिल्ली रेस कोर्स की रेसी जुगाड में तो कहीं कोई जुगाड़ी बाबा के साथ तो नहीं लगे हैं?
    5/ नए नवेले को नाथने की कमल नीति ——     अमूमन  सभी संगी साथियों को साथ लेकर मुख्यमंत्री को चलना पड़ता है। मगर दिल्ली स्टाईल में दो टूक यह कहना कि कमलनाथ मंत्रीमंडल में नए नवेले विधायकों को जगह नहीं मिलेगी। स्पष्टवादिता तो ठीक है पर राजनीति में कतई नहीं।  पर आदेशात्मक शैली में काम करवाने वाले कमलनाथ को मुख्यमंत्री का लिबास ओढ़कर सबको साधने और साथ लेकर चलने की नीति पर चलना होगा। नही तो कांग्रेस जमाने में कपड़ों की तरह मुख्यमंत्री बदलने वाला जमाना शायद भूले बिसरे नहीं होंगे।  जुबां बंद करके ही छिंदवाड़ा वाले कमल बाबू का सूबे में कमल खिला रह सकता है?
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