कांग्रेस की बदली राजनीति और रणनीति/ अनामी शरण बबल

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एनडीए और यूपीए की लोकसभा चुनाव की तैयारी

 नयी दिल्ली     पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार के साथ ही यूपीए और एनडीए की राजनीति और  रणनीति में भारी बदलाव के संकेत को लेकर दोनों तरफ हलचल है। दोनों दलीय संगठनों में उठापटक मान मनौव्वल रूठा रूठी असंतोष और नाराजगी का दौर जारी है। वहीं लोकसभा चुनाव से पहले की रणनीति और राजनीति में बदलाव के संकेत लगभग तय है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में काफी तनातनी के बाद अंततः मुख्यमंत्री का चयन हुआ। सभी सूबे के  मुख्यमंत्रियों ने कार्यभार भी संभाल लिया है। मगर आखिर कार कितने-कितने दिनों की है यह कुर्सी ?इस कयास को लेकर भी खासकर भोपाल और जयपुर का बाजार गरम हो चुका है।

विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा प्रेशर में है। अपनी खिसकते जनाधार और सता की खिसियाहट से उबरने की कोशिश में लगी है। तो तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत से यूपीए की पूरी कहानी ही बदल गयी है।  विपक्षी एकता में कल तक अवांछित कांग्रेस और राहुल गांधी आज यूपीए के सबसे ताकतवर चेहरा बनकर प्रकट हुए हैं। अलग थलग से विरोध  असंतोष  और नाराजगी जाहिर करने वाले भी तेवर ढीला करके अंततः एक साथ आ ही जाएंगे।  बकौल शरद यादव यह समय तेवर दिखाने का नहीं है। अपनी जमीन जनाधार और अपने वजूद को बचाने की घड़ी है। दलीय एकता में मामूली-सी गलती से भी जनमानस ‌में ग़लत संदेश जाता है। मतभेदों को भुलाकर एकजुट होने और दिखने दिखाने का यह समय है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि  एनडीए सरकार को मात देने का यह सर्वोत्तम समय है, और  इस समय भी मोलभाव एकता के लिए खतरनाक है। सभी दलों को यह नहीं भूलना चाहिए कि 2014 चुनाव में सबों का प्रदर्शन कितना खराब रहा था। फिल्मी अभिनेता और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राज बब्बर ने भी कहा कि इस समय एक दूसरे के साथ हाथ थामकर देश के सामने एक उम्मीद की तरह दिखने का समय है। श्री बब्बर ने कहा कि जनता के मूड को बदलने में समय नहीं लगता।
—कांग्रेस भले ही पूरे देश के लिए उम्मीद की तरह दिखने लगी हो, मगर जीत के साथ ही आलाकमान के फैसले पर असंतोष प्रकट हो गया है। खासकर राजस्थान में अशोक गहलोत ने आलाकमान को अपनी जिद से मुख्यमंत्री बनाने केलिए झुकाया। नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि अशोक गहलोत और कमलनाथ की पारी केवल छह-छह महीने की है। लोकसभा चुनाव में यूपीए की जीत के बाद दोनों मुख्यमंत्री इस बात के लिए सहमत हो गए हैं कि राहुल गांधी के हाथों को मजबूत करने के लिए कमलनाथ और अशोक गहलोत सीएम पद त्यागने को तैयार हैं। और यही समर्पण भाव के चलते दोनों राज्यों के उपमुख्यमंत्री पद को मंजूर कर लिया है। खासकर कमलनाथ ने तो अपने आलाकमान से मुख्यमंत्री बनने की ललक और मन की बात को रख दी। भरोसेमंद सूबे के अनुसार कमलनाथ की इच्छा को देखते हुए जूनियर सिंधिया तो उपमुख्यमंत्री बनने से भी मना कर दिया था,मगर कमलनाथ के विशेष अनुरोध पर कांग्रेस सुप्रीमो राहुल गांधी ने सिंधिया को सहमत किया। हालांकि पुर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इन बातों को बकवास करार दिया है। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद के हालात पर उस समय समीक्षा की जाएगी,मगर अभी कांग्रेस का पूरा ध्यान   प्रदेश की हालत को बेहतर करने की है। राजस्थान को लेकर इसी तरह के अफवाहों पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आलाकमान के निर्देश का सभी पालन करते हैं। मगर अभी तो पूरा जोर बेहतर शासन देने की है।
-: उधर अपनी जमीन और विश्वसनीय छवि को पुख्ता करने की कोशिश में लगी है। उधर राफेल सौदों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी राफेल का प्रेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिर पर मंडरा रहा है। पीएम की ईमानदार छवि को खतरे में देखकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से अभी अभी बेरोजगार हुए शिवराज सिंह चौहान ने भी सूबे में आभार यात्रा के बूते अपनी विराट छवि को प्रस्तुत करने की चेष्टा में जुटे हैं। अलबत्ता मोदी से नाराज संघ परिवार के मन में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व और लो प्रोफाइल इमेज़ इनकी सबसे बडी ताकत है। कमसे कम एक विकल की तरह शिवराज दिखाने की कोशिश में लगे हुए हैं। उधर प्रधानमंत्री और भाजपा सुप्रीमो अमित शाह हार के गम को बिसरा कर पार्टी में जोश भरने की कवायद में जुटे हैं। यानी दोनों गठबंधन अपने अपने गांठ को मजबूत करने में सफल होने के फिराक में लगे हैं।
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