सांसदों और विधायकों के लिबास में संसद और विधानसभा बनते जा रहे हैं अपराधियो के शरणस्थल / अनामी शरण बबल

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बाहुबलियों पर नकेल की कोशिश

संसद और विधानसभा में अपराधी सांसदों-विधायकों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। पूर्व और मौजूदा  समय के 430  सांसदों-विधायकों पर इतने संगीन मामले लंबित हैं जिसमें उन्हें फांसी या उम्रकैद की भी हो सकती है। देश के मौजूदा सांसदों-विधायकों पर 2324 मामले लंबित हैं। इसमें पूर्व सांसदों और विधायकों को भी ले लें तो इन माननीय जनप्रतिनिधियों पर कुल 4122 आपराधिक मामले लंबित हैं। नेताओं के इस संगीन मामलों में पिछले 27 सालों में ज्यादातर मामलों में आरोप भी तय नहीं हुए हैं। इन जनप्रतिनिधियों के मामले में शीघ्र सुनवाई करके को लेकर सुप्रीम कोर्ट खासे गंभीर है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पहल और हर जिला स्तर पर स्पेशल कोर्ट गठित करके एक तयशुदा समय के भीतर मामलों को निपटाने का फरमान जारी किया है। केवल अपराध की गंभीरता से नेताओं  पर प्राथमिकी दर्ज कराने कु मांग को बेंच ने खारिज कर दिया है।

[आपराधिक सांसदों-विधायकों के अपराध और आपराधिक रिकॉर्ड को अपटूडेट कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट गंभीर है। पिछले तीन दशक में भी ज्यादातर मामलों में आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इसे सैद्धांतिक रूप से सर्वोच्च प्राथमिकता दिया है। सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि अपने यहां बनी विशेष अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के उपर लगे गंभीर मामलों की सुनवाई आरंभ कराते। कोर्ट ने सबसे पहले उन मामलों की सुनवाई का फरमान दिया है जिसकी सजा  आजीवन कारावास फांसी की हो सकतीं हैं।  देश की विभिन्न अदालतों में ऐसे 430 मामले अपनी सुनवाई की बाट जोह रहे हैं। जल्द निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन करने का भी जोर दिया। यूपी में सबसे अधिक 922 मामलों में  जनप्रतिनिधियों पर  मुकदमे लंबित हैं। केरल के जनप्रतिनिधियों पर 312 और बिहार के जनप्रतिनिधि वांछित है।
 देश के नेताओं के खिलाफ लंबित मामलों में ज्यादातर मामले में 27 सालों के बाद भी आरोप तय नहीं हुए हैं। इन मामलों की धीमु रफ्तार पर चिंता जताते हुए इसको अपराध की संगीनता के आधार पर मुकदमों को निपटाने पर जोर दिया। इसके तहत 430 मामलों में संलिप्त जनप्रतिनिधियों के अपराध इतने संगीन है कि इसकी सजा उम्रकैद या फांसी भी संभव है। दूसरे नंबर पर उन मामलों को निपटाने पर जोर दिया है जिसकी न्यूनतम सज़ा पांच साल से अधिक हो सकतीं हैं। पांच साल से कम की सज़ा वाले अपराधों की सुनवाई होगी।  एक साल से कम की सज़ा वाले मामलों को एक माह के अंदर निपटाने का जोर दिया गया है। जबकि कोर्ट ने केवल आरोप या जानबूझ जबरन लांछित मामलों को भी विशेष अदालत के विवेकानुसार  फैसला देकर मामलेे को रफा-दफा किया जाए।  लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट इन मामलों को फाइनल करना चाहती है। मालूम हो कि अपराध साबित होने पर कोई भी आदमी चुनाव नहीं लड सकता है।  कोर्ट भी चुनावी प्रक्रिया आरंभ होने से पहले इन मामलों को निपटाने के लिए सजग है। सभी राज्य सरकारों को इसके लिए आवश्यक संसाधन व्यवस्था सुनिश्चित कराने का फरमान दिया है। आपराधिक मामलों में लिप्त नेताओं में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी भी वांछितो में है।  अब देखना यह है कि बाहुबलियों के उपर लगाया लगाने की  सुप्रीम पहल से किन किन बाहुबलियों पर नकेल संभव है।
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