चुनाव की पारदर्शिता पर उठते सवालों के बीच चुनाव आयोग की पहल / अनामी शरण बबल

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चुनाव आयोग की चुनौती

चुनाव आयोग के पलटवार से चुनाव में गड़बड़ी के आरोप लगाने वाले सांसत में है। छतीसगढ़ में दो चरणों में मतदान समाप्त हुए चार दिन भी नहीं बीते कि  कुछ दलों ने अनियमितता और का आरोप लगाया था। इन आरोपों पर चुनाव आयोग ने सभी दलों को निर्देश दिया है कि जिस मतदान केंद्रों पर शक है तो औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद ईवीएम मशीन में लगे वीवीपीएटी में जमा पर्चियां की गिनती करके धांधली लगाने वालों को इसकी सत्यता की जांच करा दी जाए जिससे मशीन के अॉपरेशन और मतदान के बाद पर्चियां के इकठ्ठा होने पर संदेह ना रहे। चुनाव आयोग का महत्व कदम चुनावी पारदर्शिता और सत्यता को प्रमाणित करने की कोशिश का एक तरीका है।

 उल्लेखनीय है कि कि छतीसगढ़ में 12 नवम्बर को नक्सली प्रभावित इलाका राजनांदगांव और बस्तर संभाग के छह-छह सीटों समेत कुल 18 सीटों पर मतदान कराया गया था। जबकि 20 नवम्बर को 72 सीटों पर मतदान हुए थे। कुछ ईवीएम मशीनों के देर से काम करने और कुछ मशीनों पर यह आरोप लगाया गया था कि बटन किसी का भी दबाया जाए पर मतदान केवल एक खास निशान पर ही लग रहा है। इन आरोपों को हवा देते हुए कई दलों ने भी चुनाव आयोग से फिर मतदान कराने या वीवीपीएटी में जमा पर्चियां  की संख्या में मिलान कराने की मांग की थी। इन मांगों को लेकर चुनाव आयोग काफी सजग और गंभीर हो गया। प्रदेश के चुनाव अधिकारी को निर्देश दिया है कि इस तरह के आरोप और शक जाहिर करने वालों के लिए दिशा-निर्देश जारी करें और तमाम औपचारिकताओं के बाद कोई जिला प्रशासन के समक्ष संबंधित पक्षों के आरोपों के शक को निर्मूल किया जाए। दिल्ली चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मतदान में धांधली के आरोप लगाने पर वादी को एक पत्र के मार्फत वार्ड मतदान केंद्र मतदान संख्या आदि की जानकारी के साथ एक नीयत रकम जमा कराना होता है। जिसके बाऊ एक निश्चित दिन पुलिस की सुरक्षा प्रशासन की देखरेख में वीवीपीएटी पर्चियां की गिनती होती है। चुनाव आयोग के करारा जवाब के बाद देखना है कि अखबारी खबर बनने के लिए बेताब नेताओं केर गैरजिम्मेदाराना नेचर कायम रहता है या सत्यता की परख का साहस करेंगे?
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