शिवसेना की उत्तर भारत में विस्तार रणनीति
भारतीय जनता पार्टी से लगातार संबंधों की खाई लगातार चौड़ी हो रही है। भाजपा की बी टीम वाली इमेज से बाहर निकलकर शिवसेना उत्तर भारत में अपनी धाक और जनाधार बढाने में लगी है सालों के बाद महाराष्ट्र से बाहर निकल कर शिवसेना सुप्रीमों उद्धव ठाकरे पहली बार अयोध्या आ रहे हैं। अयोध्या के अलावा मथुरा वाराणसी का मुद्दा उछाल कर शिवसेना ने अपने आक्रामक तेवरों की झलक दिखा दी है। इसके लिए भाजपा सहित सभी दलों के ताकतवर बागी और असंतुष्ट नेताओं के बूते अपना पांव फैलाने को कटिबद्ध है। लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के अलावा नगर निगम स्थानीय निकायों और पंचायती चुनाव में भी उतरने की रणनीति पर तैयार है।
मालूइ हो कि शिवसेना के संस्थापक सुप्रीमों की राजनीति का अपना अलहदा अंदाज है। अपने निवास मातोश्री में बैठकर महाराष्ट्र से लेकर पूरे देश की पोलिटिकल करने वाले बाल ठाकरे की अपनी शैली थी। मिलने वाला चाहे कोई भी हो मगर बाल ठाकरे कभी भी उससे मिलने उसके पास नहीं गये। बाल ठाकरे से मिलने वाले को मुंबई में उनके घर मातोश्री में ही आकर मिलना संभव हो पाया। अपनी आन बान और शान के चलते महाराष्ट्र में महान बन गये बाल ठाकरे की लोकप्रियता और जनता के बीचोंबीच प्रभाव को इनके देहांत के बाद देखा गया। जब लाखों लोगों की अपार भीड़ के सामने मुंबई शहर ठप्प सा हो गया। पूरे राज्य में शिवसैनिकों की अपार जनसमुदाय के सामने सत्ता प्रशासन सब मूकदर्शक होकर अंतिम संस्कार के बाद भीड़ के खत्म होने का इंतजार करती रही। बाल ठाकरे का अंतिम संस्कार संभवत अपार जनता का एक साथ सडकों पर उतरने का एक दुर्लभ जमावड़ा था। जिसका दोहराव फिर शायद ही हो। बाल ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे ने कमान संभाली और लगभग अपने पिता के अंदाज को कायम रखा। मगर शिवसेना कौ पश्चिम भारत के एकमात्र राज्य महाराष्ट्र के सीमा से बाहर निकालने के लिए गंभीर है। भाजपा के साथ लगातार चौड़ी होती रिश्ते की खाई को उद्धव ठाकरे भी महसूस करते रहे। सीटों के बंटवारे के मामले में तालमेल नहीं होने के बाद से संबंधों में खटास आ चुकी है। भाजपा की नीतियों को और आक्रामक तेवर देते हुए शिवसेना प्रमुख 25 नवम्बर को अयोध्या आ रहे हैं। इसी मौके पर उतर भारत में आकार बढाने की योजना है। अगले साल लोकसभा चुनाव में शिवसेना महाराष्ट्र गुजरात मध्यप्रदेश राजस्थान यूपी बिहार हरियाणा पंजाब हिमाचल प्रदेश झारखंड छतीसगढ दिल्ली में 150 से 200 सीटों पर उतरने को लेकर गंभीर है। इसके लिए सभी दलों के नेताओं से संपर्क साधा जा रहा है। असंतुष्टों बागियों उपेक्षित नेताओं के साथ इलाके के ताकतवर हस्तियों पर भी शिवसेना की नजर है। सांसद के साथ साथ विधानसभा चुनाव स्थानीय निकायों नगर निगम चुनावों पंचायती चुनाव के लिए भी शिवसेना अपनी धार और जनाधार को जमीनी स्तर पर ले जाने पर विचार कर रही है। शिवसेना छोड़कर इधर-उधर भटक रहे उग्र तेवर के एक नेता ने बताया कि हर स्तर पर शिवसेना अपने आपको उत्तर भारत सहित पूर्वी भारत में धमक चाहती है। सूत्रों के अनुसार एंटी मीडिया इमेज को बदलने के लिए भी शिवसेना गंभीर है। सामना से अलग अन्य अखबारों और पत्रकारों टीवी के लिए भी समय निकालने की योजना है ताकि बडे़ पैमाने पर उद्धव ठाकरे अपनी बात रखकर जनता से संवाद कर सके। अब देखना है कि अयोध्या यात्रा के बाद शिवसेना के भविष्य को लेकर उद्धव ठाकरे कोई फैसला करते हैं अथवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित इ के अनुरोध पर शिवसेना के बढ़ते कदम थम जाएंगे। वैसे विस्तार की पूरी पटकथा लिखी जा चुकी है। होमवर्क भी हो गया है पर अंजाम कै ग्रीन सिग्नल की प्रतीक्षा है। ज्यादातर शिवसैनिकों में उत्साह और उत्सुकता भी परवान पर है।