सत्ता विरोधी लहर के बावजूद मध्यप्रदेश कांग्रेस में एकजुटता तालमेल का अभाव /अनामी शरण बबल

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शिवराज की लाज बचाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी मैदान में

सता विरोधी लहर और जनता में भारी असंतोष के बावजूद शिवराज सरकार को शिकस्त देने में कांग्रेस संगठित नहीं है।  नेताओं में आपसी खींचतान कलह और तालमेल की कमी से
कांग्रेस भाजपा के लिए चुनौती पेश करने की बजाय अपने आप से संघर्ष कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की लगातार सक्रियता के बावजूद प्रदेश कांग्रेस के त्रिदेवों में कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच लगातार हो रहे तकरार से भी कांग्रेस को लेकर जनता की उम्मीदें कम होती दिख रही है। वही भारी जनविरोधी तेवर के बावजूद कांग्रेस की कमजोर चुनौती को भांपकर सता गंवाने को लेकर आशंकित शिवराज सरकार की उम्मीदें बनी हुई है।
 == गौरतलब हो कि पिछले तीन टर्म से लगातार सत्तारूढ़ हो रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी के लिए मैदान में हैं। इसबार केंद्र में भाजपा एनडीए सरकार के होने और कांग्रेस की लस्त पस्त हालत के बावजूद शिवराज संकट में है इनकी तमाम हवाई घोषणाओं और ढेरों वायदों को पूरा नहीं करने के चलते ज्यादातर जनसभाओं रैलियों जनसंवाद संगोष्ठी में भी आमलोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पुलिस के घेरे में शिवराज नागरिकों की नाराजगी को झेल नहीं पा रहें हैं। केवल नागरिकों का विरोध ही नहीं पार्टी के भीतर रहकर बागी हो गये सैकड़ों नेताओं और उनके हजारों कार्यकर्ताओं की नाराजगी और विरोध से भी आम जनता के बीच शिवराज सांसत में है। केंद्र की मोदी सरकार की नोटबंदी और GST की मार से आहत लोगों को भी अपना बदला लेने की कोशिश भी परवान पर है। शिवराज शासन के दौरान व्यापम घोटाले से आज भी बेरोजगार युवकों की नाराजगी कायम है। किसानों द्वारा आत्महत्या नौकरी के लिए भटक रहे हैं लाखों बेकारी झेल रहे युवकों खराब कानून व्यवस्था बढते अपराध महिलाओं के खिलाफ बढते अपराध शिक्षा की बदहाली तथा हर स्तर पर भाजपा सरकार जनता के सवालों के सामने ठहर नहीं पा रही है। श्री राम मंदिर निर्माण को लेकर आग लगावन  उन्मादी भाषणों का भी यहां खासा असर नहीं है।
==== ऐकोई खास चुनौती नहीं होने के बाद भी भाजपा के समर्थन में हवा बांधने के लिए शुक्रवार से बीच बीच-बीच में गैप करके पांच दिन में प्रधानमंत्री 12 से 15 जनसभाओं को संबोधित करके शिवराज की लाज बचाने का जिम्मा थामा है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी अगले
दस दिनों में ज्यादातर समय एमपी में ही जाया करके नाराज नेताओं कार्यकर्ताओं को मनाएंगे। ===_====एक तरफ सत्तारूढ़ होने के बाद भी  भाजपा सांसत में है तो दो दशकों से सता से वंचित कांग्रेस पूरी तरह एकजुट होकर चुनाव में उतरी दिख नहीं रही है। पारिवारिक और अपनी दूसरी शादी के बाद पार्टी और जनता के बीचोंबीच अपनी लोकप्रियता गंवा चुके दिग्गी राजा को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने एमपी चुनाव से बाहर कर रखा है इसके बावजूद वे ज्यादातर जनसभाओं और रैलियों में नजर आ रहे हैं। कई बार तो अपनी उपेक्षा से आहत दिग्विजय सिंह प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और भावी सीएम की तरह मान्य सिंधिया से ही उलझ गये। उधर पार्टी की ओर से कमलनाथ को ज्यादा तरजीह नहीं देने से भी कांग्रेसी नेता जी जान लगाकर चुनावी माहौल को पंजामय करने की जी तोड़ कोशिश नहीं हो रही है।
=====) अभी कमर कसकर कांग्रेस चुनावी समर के लिए सजग भी नहीं हुई थी कि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस यदि सरकार बनाती है तो सरकारी भवनों कार्यालय परिसरों में आरएसएस शाखाएं नहीं लगेगी कांग्रेस अपने इस बयान  को लेकर अभी सोच विचार भी नहीं कर रही थी कि भाजपा ने इसे अपना मुद्दा बना लिया और कांग्रेस पर तानाशाही शासन का आरोप लगाना आरंभ कर दिया। संघ की शाखाओं पर बैन लगाने के बयान की कमलनाथ सफाई देते घूम रहे हैं मगर कमलनाथ की बातों पर लोग यकीन नहीं कर रहे हैं। और उधर मुख्यमंत्री आमलोगों को कांग्रेस सरकार के प्रति सावधान करते घूम रहे हैं। शिवराज सरकार के लिए प्रधानमंत्री के जुमलों की बारिश होने वाली है उधर सुप्रीम कोर्ट में राफेल सौदे में धांधली की खुलती परत दर परत सच्चाई का जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखना भी होगा। मगर भाजपा नेताओं की भोकाली शैली में चुनाव लूटने और जनता की आंखों में धूल झोंकू शैली के सामने कांग्रेस टिक नहीं रही है। दरअसल कांग्रेस के पास मोदी के टक्कर वाला कोई जनसंचारी भी नहीं है जो जनता के दिमाग में अपनी बातें ठूंस सके। तमाम विरोधाभास के बाद भी एमपी रण में कांग्रेस की बाजी को लेकर लोग आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं।।
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