हिमाचल प्रदेश में गौवंश संवर्द्धन नीति

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हिमाचल प्रदेश में बदला जा रहा है गायों के नाम एक तरफ पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में शहरों और रेलवे स्टेशनों का नाम बदला जा रहा है तो हिमाचल प्रदेश में इनदिनों गायों के नामों को बदलने का अभियान परवान पर है। गायों की नस्लों के विकास संवर्धन और अनुसंधान का काम जारी है। इसके लिए केंद्र सरकार ने 10 करोड रूपये के एक प्रोजेक्ट की मंजूरी दी है। पहाड़ी गायों की कम होती संख्या और लुप्त नस्लों को संतुलित करने के लिए सरकार गंभीर है।                उल्लेखनीय है कि राजधानी शिमला के नाम को श्यामला करने की कोशिश की गयी मगर जनता द्वारा व्यापक विरोध को देखते हुए इस योजना को फिलहाल अधर में लटका दिया गया। शहरों के नाम को बदलने की योजना की नाकामी के बाद सरकार ने पहाड़ी गायों की लुप्त हो रही गायों के संवर्धन और विकास की योजना को कार्यरूप दिया। केंद्र सरकार ने इसके लिए दस करोड़ रुपये की एक परियोजना की मंजूरी दे दी। जिसमें एक अनुसंधान केंद्र की स्थापना के साथ साथ गोपालन आहार और देखरेख की अलग प्रयास की जानकारी  सुलभ की जाएगी। पशुपालन विभाग के मसौदे में लाहौल स्पीति की चुरू गायों को अब हिम चुरू नाम दिया गया है। छोटे कद की गौरी गायों को अब हिम गौरी का नया नाम दे दिया गया है राज्य में लगातार कम हो रही गायों की यह हालत है कि लोगों और डेयरियों में पालन की जा रही है गौपशु से अधिक गायें गांव शहर में आवारा घूम रही है अमूमन बुढी और उम्रदराज गायें किसी काम लायक नहीं रह जाती है। पशुपालन विभाग का भी कहना है कि अभी से नहीं सतर्क हुए तो हिमाचल प्रदेश में गौ दर्शन दुर्लभ हो जाएगा। लाहौल स्पीति की गायों का दूध एकदम पीला होता है जबकि हिमगौरी गायों का दूध हल्का पीलापन लिए होता है। गौरतलब अनुसंधान केंद्र भी नस्ली सुधार में लगी है। पशुपालन विभाग के अनुसार इनके विकास गौवंश संवर्धन संरक्षण के तहत एक दर्जन किस्म की गायों की नयी नस्लें संपोषित हो रही है। जिनका अलग अलग नाम देकर गौ संरक्षण को नया आकार दिया जाएगा। और इस दिशा में सरकार जनता और पशुपालन विभाग की सक्रियता का सुफल दिखने लगा है।

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