बुरा न मानो चुनाव है /अनामी शरण बबल

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1/ इस बार घुसपैठियों को भी बनाया गरमा गरम मुद्दा  |
       पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की हलचल परवान पर है, मगर निशाना अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिकी है। भाजपा सुप्रीमो अमित शाह देश के चारो तरफ फैले लाखों घुसपैठियों को भारतीय सीमा से निकाल बाहर कर  घुसपैठियां मुक्त भारत करने का दावा करने लगे। इसके लिए शाह वोटरों को एक बार फिर नरेंद्र मोदी को विजयी बनाकर प्रधानमंत्री बनाने का आह्वान कर रहे हैं। देश के चारो तरफ सीमांत इलाको में करोड़ों विदेशी घुसपैठियों का भरमार है और देश के लिए यह एक बडी़ समस्या भी है। देखे इस मुद्दे पर वोटर किसको निकाल बाहर करते हैं।
–2/ सांप बिच्छू डेंगू का दौर – – 
 लोकतंत्र के लिए भले ही चुनाव एक उत्सव हो, मगर नेताओं के लिए चुनाव एक भयानक सपने की तरह होता है। जनता के बीच इन जन नेताओं को नाना प्रकार के कटु अनुभवों नागवार  टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। कोई प्रधानमंत्री को डेंगू मच्छरों से तुलना करता तो कोई शिवमूर्ति पर बैठा सांप तक कह देता। एक दूसरे की पोल खोलने में दिल्ली नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग को करप्शन टावर कहके कांग्रेस के बड़े नेताओं को सीधे तौर पर लांछित करते। तो कांग्रेस द्वारा भाजपा के नये पार्टी दफ्तर को ब्लैक मनी टावर कहा जाने लगा है। चुनाव के खात्मे के साथ ही सब सामान्य सा हो जाएगा मगर वोटरों के मन में अंकित छवि सालोंसाल तक जिंदा रहती है यानी सफेद कुर्ता धारी सफेदपोशों के बारे में पब्लिक सब जानती है
3/-   यूपी नहीं देखा तो इंडिया नहीं देखा?
चुनावी मौसम में दावों वायदों और मुंगेरी सपनों का दौर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने सूबे की नयी पर्यटन नीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि यूपी को देश का सबसे उत्तम प्रदेश बनाकर इसे पर्यटन प्रदेश की तरह विकसित किया जाएगा योगी इसको पर्यटन उद्योग
और युवकों के रोजगार से एकसूत्र करना चाहते हैं। सूबे की विशेषता पर  योगी इस मुखर हैं मानो कहीं से यह सूबा मिल गया हो। लोकसभा चुनाव से पहले कुंभ का आयोजन एक बडा़ धार्मिक समारोह है। योगी तमाम धार्मिक शहरों स्थलों को नया चेहरा देना चाहते हैं। उद्योग शिक्षा पौराणिक स्थलों ऐतिहासिक इमारतों किलो मकबरों खंडहरों दुर्लभ संघर्ष पहलू को नये तरह से पेश करने की कोशिश करेंगे इनका एक ही नारा है जो यूपी नहीं देखा उसने इंडिया नहीं देखा। यानी आधा दर्जन से अधिक प्रधानमंत्री देने वाले सूबे के चाल चरित्र चेहरा बदलने की कोशिश कर रहे हैं। देखना है कि दिल के अरमां पूरे होते हैं या  आंसुओं में
4/ शिवसेना प्रहार 
भाजपा के खिलाफ लगाता अग्नि वर्षा करते हुए घूम रहे शिवसेना सुप्रीमों ने साबित कर दिया है कि वे अब एनडीए के साथ नहीं है। मोटे तौर पर शिवसेना थ को भी प्रवीण तोगड़िया का साथ रास आ रहा है। लगता है कि शिवसेना चुनाव जीतने की बजाय तोगड़िया के साथ मिलकर अयोध्या समेत तमाम मुद्दों पर शिवसेना अपना दावा करने शिकंजा जमाने की कोशिश कर रही है। और सरकार के खिलाफ बोलने के लिए फायरब्रिगेड तोगड़िया से बडा़ वाचाल नेता मिलना दूभर नही है। और मंदसौर में आयोजित जनसभा में भाजपा के बागियों समेत विपक्षी नेताओं का जमावड़ा भी दिखा रहा है कि अब तोगड़िया विपक्ष के लिए अछूत होने की बजाय सहोदर हो गये हैं। शिवसेना और तोगड़िया एकदूसरे को पावरफुल बना कर एनडीए के लिए सिरदर्द बन सकते हैं। यही कारण है कि शिवसेना सुप्रीमों प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों को रक्तरंजित कह रहे हैं और उनको अयोध्या मामले को  जुमलों के बीच खोने का अंदेशा लग रहा है
5/ मोबाइल भरा ट्रक 
     छतीसगढ पुलिस ने एक ट्रक मोबाइल जब्त किया है। मगर यह किसके लिए चला था और इसको कहां पर ले जाकर देना है? यह पतानहीं चल पाया है। हजारों मोबाइल का उपयोग क्या चुनाव में वितरण करने के लिए लाया जा रहा था। साधारण से मोबाइल को लेकर सूबे की पुलिस भी खामोश है। इसका क्या अर्थ लगाया जाए भाईयों बहनों?
6/संकट में भगवान?
 किसी भी चुनावी बिसात में उम्मीदवारों के साथ साथ भगवानों की भी परीक्षा हो रही है। कांग्रेस मुखिया समेत भाजपा मुखिया भी भगवान के दर दर पर भटकते हुए जीत की कामना कर रहे हैं। एक ही सीट पर जीत हासिल करने के लिए सभी उम्मीदवारों की अरदास प्रार्थना और मन्नौतियों के बीच जीत किसी एक को ही मिलेगी। और जिसे मिलेगी उसके लिए तो भगवान का दर फलदायी है मगर औरों के लिए क्या भगवान सहायक हैं? भगवान के इस संकट को अब कौन बूझेगा?
7/= बेटा-बेटी जमाई पार्टी उर्फ बीजेपी
 अभी तक कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगता रहा है। बेटा बेटी पोता दामाद की पार्टी यानी कांग्रेस। मगर भाजपा नेताओं के वंशवाद वंशबेल पर बीजेपी को अब  बेटा-बेटी जमाई पार्टी कहना चालू कर दिया है। राजस्थान मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में कोई तीन दर्जन नेताओं ने यह कहते हुए अपने बेटा-बेटी पोता जमाई बहुओं को टिकट की दावेदारी ठोक रखी है कि क्या इनका गुनाह परिवार से जुडाव है?  यानी भाजपा के लिए अब अपना कमलिया छवि बचाना भारी पड़ हो रहा है।
8/जनसंवाद  से दूर भागते लोग 
मुख्यमंत्री के जन आशीर्वाद दौरा हो या शहर दर शहर में आयोजित जनसंवाद सभा। सबका आयोजन तो धूम धडाके के साथ धड़ल्ले से किया जा रहा है पर कहीं जनता नदारद तो कहीं आशीर्वाद नदारद? यानी सरकारी धूमधडाके के बाद भी शिवराज बाबू के लिए सफर सरल और सहज नहीं लगता? देखना है कि इस समय के महाभारत में मामाजी कोऊ क्या अपनी-अपनी बहनों का साथ मिलेगा?
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