आधा गप्प पूरा सच / अनामी शरण बबल

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 1 / किसी मोदी को तोता मुखिया बनाने की मुश्किलें

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के कई नाम इंडिया में विख्यात कुख्यात है। हां तो केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई उर्फ तोताराम। सता के लिए सता के साथ सताहित सता परोपकार बाकी बेकार आदि इत्यादि को सीबीआई के ही बहुरुपी नाम की लोकप्रियता का प्रतीक है। कहने को तो तोता आजाद है मगर नकलची तोता की ऐसी-तैसी स्वामीभक्ति की लोग इसको इसकी दासता पर सब लोग चकित रह जाते हैं। मगर कभी-कभी कोई तोता हेड सरकार के लिए सबसे बड़ा हेडक बन जाता है। कभी सरदार जी सिरदर्द बन गए तो कोई और हेड भी देश की सता के हेड को भी अपनी सख्ती ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की अंगुली गूगली से हेड के लिए बेकार से हो जाते हैं। फिलहाल तोताराम के हेड भी सता के संकेत पर डांस नहीं कर रहे हैं। सीबीआई के ही चाकर अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करा दी गई है। यानी तोता के तेवर से दिल्ली दरबार सांसत में है मौजूदा तोता मुखिया की नौकरी करीब तीन माह की बची है लिहाजा कोई सख्ती करके चुनाव के मुलायम नेचर को बिगाड़ने का भी इरादा नहीं है। नये तोता मुखिया के संभावित नामों में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तो है। लंबा साथ पूरा विश्वास रहे इस HMV से गुजरात दंगों के दौरान काफी मदद भी मिली थी। हालांकि कुछ हमनाम टाईटल वाले नामों ने अपनी बेईमानी बैंक और जेवरात डकैती लुटेरी नीतियों से बदनाम किया। मगर अपने सहयोगी सहकर्मी विधायकों सांसदों और मंत्रियों से ज्यादा इन नौकरशाहों पर विश्वास करने वाले प्रधानसेवक इसबार एक मोदी को तोताराम का मुखिया बनाने की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं। हालांकि तोता मुखिया के चयन के लिए गठित समिति में मुख्य न्यायाधीश और लोस और रास में विपक्ष के नेता की सहमति की जरूरत होती है। और ताजे प्रसंगों में इनसे रिश्ते मधुर भी नहीं है कि सेवक की पसंद को सर्वमान्यता मिल जाए। हालांकि सरकार के लिए किसी को भी गद्दी थमा देना कठिन नहीं होता। उसपर शाहनुमा मैनेजर का साथ हो तो कोई भी काम कभी भी कुछ भी नामुमकिन नहीं होता। यानी लाख मुश्किल हो रास्ता मगर सेवक के लिए तोताराम की कमान किसी गुजराती मोदी पुलिसिया को तोताहेड बनाना कठिन नहीं है। देश को एक और स्वामी भक्त का इंतजार है।
2/: बना रहे रस के लिए उडीसा

साल 2014 में बनारस के साथ साथ वडोदरा संसदीय क्षेत्र से भी चुनावी रण करने वाले प्रधानमंत्रीजी बनारस के साथ साथ इसबार उडीसा की तरफ मुखातिब हो सकते हैं। संभावना है कि कोई धार्मिक संसदीय क्षेत्र रहे। इस नवीन रणनीति के पीछे निशाने पर उडीसा पश्चिम बंगाल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सीधे-सीधे टार्गेट पर है। केरल कर्नाटक और तमिलनाडु को रखा गया है। नॉर्थ साउथ क्षेत्र से हो पीएम। साउथ इलाके का हो पीएम का यह एक भावनात्मक रणनीति है इसबार यूपी बिहार से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए ही भारत के इस इलाके में चमत्कार की आस है। उडीसा में तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को पाटा जा रहा है। वहीं पार्टी मुखिया की इन इलाकों में लगातार दौरों से जमीनी स्तर पर संगठनों की नया रूप दिया जा रहा है। मोटे तौर पर यूपी बिहार में इस बार 2014 के परिणाम के दोहराने की उम्मीद नहीं है। चुनाव के आसपास कुछ और सहयोगियों के बिदकने की उम्मीद है। पार्टी मुखिया भी इसबार उतर और मध्य भारत में हवा में खिलाफत की गंध देख रहे हैं। जबकि पार्टी को बंगाल के साथ उडीसा और तेलंगाना को लेकर उत्साहित रूख है। यानी नये क्षत्रपों में नयी संभावनाओं के बीच इधर के नुकसान की भरपाई होने की संभावना है। यानी देश के निजाम पार्ट – 2 के खेल की बिसात पर सेवक का प्रधान खेल की पटकथा लिखी जा रही है।
 3/ होगी यूपी में रोजगार की बारिश

यूपी यानी उत्तरप्रदेश में न रहेगा कोई बेकार सबके पास होगा रोजगार। सूबे की सूरत शक्ल अंदाज बदलने का दावा करते हुए गोरखधाम मुख्यमंत्री अब जनभावनाओं में युवकों को चीख पुकार के साथ आह्वान कर रहे हैं कि हर साल पांच लाख रोजगार यानी पांच साल में 25 लाख युवकों को मिलेंगे रोजगार। और वो भी अपने शहर में गांव में गली मोहल्ले में घर में दी जाएगी नौकरी। मुख्यमंत्री का दावा है कि कि सूबे का यूथ पावर राज्य की शक्ति है ताकत है। वो बाहर जाकर रोजगार के लिए नहीं भटकेगा अपने ही घर में रहकर घर को गांव को शहर को जिला को सूबे को पावरफुल बनाएगा। एकदम गजब क्या मनमोहक लुभावना मोहक मनोहर आकर्षक और दिल जीतने वाला भाषण है। बेकारों के दिल बाग बाग हो जाएंगे। लगता है कि न रहेगा कोई बेकार ऐसी है यूपी सरकार का नगमा योगीराज में हिट होगा। लोकसभा चुनाव भले ही दूर है अभी मगर लग रहा है कि किसी तिजोरी में अल्लादीन का चिराग पाकर ही मुख्यमंत्री जी बेकारी से पीडि़त बेकारों को मुंगेरी लाल के हसीन सपनों को दिखाकर बेडा पार होने की तरकीब पर काम करने में लगे हुए हैं।

 4/ सोनिया प्रियंका और सीबीआई के त्रिकोण के बाद  कौन ?

कांग्रेस की पूर्व सुप्रीमो रायबरेली से सांसद पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गांधी की पत्नी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू श्री मती सोनिया गांधी किसी के लिए भी कोई परिचय की मोहताज नहीं हैं। खराब सेहत के बाद लगभग आराम पर चल रही श्रीमती गांधी के इस बार चुनाव मैदान में उतरने की संभावना नहीं है। सोनिया गाँधी के बाद एक तरह से प्रियंका गांधी का प्रत्याशी होना लगभग तय है। पार्टी में माना भी जाता है कि प्रियंका की सक्रियता से कांग्रेस में नयी जान नवशक्ति और नवजागरण का संचार होगा। मगर नाना प्रकारेण भूमि सौदों जमीनी घोटालों में आरोपित लांछित प्रियंका गांधी के पतिदेव वाड्रा के सारे फाईल सीबीआई के दराज से गिरने लगते हैं। फाईल की धूल साफकर दामादजी पर सरकारी दामाद बनने का खतरा मंडराने लगता है। इतनी लोकप्रिय और ताकतवर परिवार से होकर भी प्रियंका का राजनीतिक इंट्री का खेल ओवर हो जाता है। मगर अब मम्मी जी यानी सोनिया गांधी के विश्राम के बाद इस परम्परागत पुश्तैनी प्रॉपर्टी में तब्दील रायबरेली संसदीय क्षेत्र से कौन होगा अगला फेस। प्रियंका गांधी या कोई और? यह इसबार यक्ष प्रश्न सा बन गया है जिसका जवाब केवल समय ही दे सकता है।

 5/ इसको कहते हैं अमेठी रायबरेली संकट।

अमित शाह की मैनेजरी में भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम से पार्टी तक को अचंभित कर दिया था। उम्मीद से ज्यादा सीटों का इतना पावरफुल सुनामी की गांधी परिवार की पुश्तैनी संसदीय क्षेत्र अमेठी और रायबरेली में भी बस उखडते उखडते साख बच गयी। किसी तरह मां बेटे की युगलबंदी संसद में नजर आई। इसबार योगीराज में कमल की सांस फूल रही है मगर शाह के साथ मिलकर योगीराज में गांधी परिवार के इस अमोघ अविजित इलाके का रिकॉर्ड नेस्तनाबूद करने के लिए जी तोड़ कोशिश करने वाले हैं। हालांकि ऐन वक्त पर बसपा स्पा वामपंथी दल भी परिवार की इज्जत बचाने के लिए कमजोर प्रत्याशी को उतारकर या बिना शर्त समर्थन देकर बाजी पलटने से पहले ही सहारा देने के लिए सब मिलकर जुट जाते हैं। इसबार राफेल को लेकर युवा गांधी पूरे परवान पर हैं। सरकार का बैंड बजाने में अकेले भारी हो रहे हैं। अब देखना है कि राफेल वार करते करते युवा गांधी अपनी सीट पर भी कवच कुंडल धारण कर पहले की तरह एकदम सेफ तो रहेंगे न?
 6/ इस धमकी के मायने 

पाकिस्तानी नापाक इरादों और हौसले को तोड़ने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री इस बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक करने की सार्वजनिक तौर पर धमकी दे रही हैं। दो साल पहले सर्जिकल स्ट्राइक करके मामले को सामने लाने की हिम्मत नहीं जुटा रहे थे। सर्जिकल स्ट्राइक की दूसरी जयंती को एक विजय अभियान की तरह अभी-अभी मनाया गया। अपने सैनिकों की हौसला बढ़ाने के लिए रक्षामंत्री एक बार फिर बोर्डर पर खूनी होली से पाकिस्तान को सबक सीखने का युद्ध राग रागिनी का संगीतमय नरसंहार माहौल की तैयारी में जुट गई हैं। उधर ठंड के दिनों की शुरूआत होते ही पाक सीमा से घुसपैठ आरंभ किया जा चुका है। सीमांत इलाके अशांत से लगने लगे हैं और दोनों देशों के बीच वार्तालाप का दौर ठहर गया है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के यहां बिन बुलाए मेहमान बन जाने वाले पीएम भी निजाम के बदलते ही अपना सूर बदल डाला है। इमरान खान को अभी भी क्रिकेटर ही मानकर चल रहे इंडिया के निजाम भी लगता है कि 2019 में होने वाले विश्व कप से पहले 2018 की सर्दियों में ही सैनिकों को अभ्यास मैच करवाने में इच्छुक हैं। सर्जिकल स्ट्राइक हो या कारगिल-2 हो। मीनी वार हो या बोर्डर पर फुलटाइम नरसंहार हो विजय का शब्दार्थ होगा 2019 लोकसभा चुनाव में शानदार जीत और सता में वापसी। लोकसभा से पहले अगले महीने में हो रहे चुनाव सेमीफाइनल के परिणामस्वरूप ही यह फैसला हो सकता है कि बोर्डर पर गोलियों की और लाशों की शहीदी बारिश होगी या लड्डुओं की थाल वितरित किए जाएंगे। यानी आने वाले दिनों में सर्जिकल स्ट्राइक के मायने कुछ भी हो सकते हैं।
7/ क्या हिम्मत है साहब ।

अंबानी बंधुओं में सबसे छोटे भाई का राग ही अलग- अलग है। मोटा भाई जहां बिजनेस को अचंभित करने की उँचाई पर ले जाने की संभावना को साकार करने में माहिर हैं तो छोटे का रंगीलापन कभी मोबाइल कभी सिनेमा कभी पावर तो कभी-कभी पोलिटिकल संबधों की खुमारी से बिजनेस गर्त की ओर है। मोबाइल का धंधा बैठ गया और छोटे साहब अरबों रुपये के कर्ज में लस्त पस्त है। उधर प्रधानसेवक जी से पर्सनल जान पहचान भी इसबार भारी पड़ा। सिनेमची और राजनीतिक संबंधों की ज्वाला कारोबार ठप्प सा हो गया। राफेल सौदे के बीच मैनेजमेंट का सरकारी साझेदार बन देना छोटे नवाब की इमेज खराब करने लगी। उसपर एक चैनल पर मुकदमा ठोक कर मामले को और अपने खिलाफ कर ली है। कई राज्यों में पावर सप्लाई करने वाले साहब के घर पर भी राफेल जंग जारी है। देखना है कि कारोबार की डूबती नाव को संभालने की कोशिश करेंगे या कोर्ट मुकदमे की अंधी दौड़ में ही रह जाएंगे। कमसे कम बडे़ भाई की सफलता को देखकर ये भी कुछ बढिया करने के लिए प्रेरित होंगे।

 8/ अब सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां नहीं.

एक समय था जब हम भारतीय हिन्दोस्तां को सारे संसार में सबसे बढि़या देश मानकर आत्ममुग्ध रहते हैं। मगर आधुनिकीकरण की नवीनतम सोच के ग्लोबल दायरे में अब हिन्दुस्तान का मोह मिटता जा रहा है। हालांकि पूरे संसार में करीब एक करोड़ से भी ज्यादा भारतीय अब प्रवासी भारतीय या भारतीय विदेशी हो गये। विदेश में जाने की ललक तो बढी है। विदेशों में जाकर नौकरी करने का भी आकर्षण परवान पर है। मगर अब विदेशों में जाकर बसने और नागरिकता पाने की ललक है। यानी हर साल 10 लाख से भी अधिक भारतीयों की यह नयी ललक क्या चिंताजनक नही है? यानी अब सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां तो नहीं ही रह गया है।
 9/ करोड़पति इंडिया के बीच भारत

एक समय था कि भारत की दरिद्रता को ही महिमामंडन करते हुए राजनीतिक दल 1990 तक अपनी नाकामी और नागरिक सुविधाओं की कमी का राग शान से बघारते थे। 1991 में कागजी प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को मात्र 40 करोड़ रुपयों के लिए देश के सोना को गिरवी रखना पड़ा था। इससे देश की माली हालत का पता चलता था। मगर आज देश में कोई साढे़ तीन लाख करोड़पति हैं। केवल एक साल में इसबार 73000 करोड़पति बढ़ गये। करोडो की जायदाद और चल अचला संपति का ऐसा मेला कि देश की आधी संपत्ति में इन लाखों का अधिकार है। 70 फीसदी सांसद करोड़पति हैं। करोड़पति जनसेवको में छोटे बड़े नेताओं की संपति का विकास भी चकित करता है। इन करोड़पतियों के अलावा ज्यादातर भारतीयों का मनी पावर में इजाफा हुआ है। इस आर्थिक ग्राफ के बीच यह सुनना निसंदेह अच्छा लगता है। मगर आज भी रोजाना 19करोड लोगों को दो टाईम भोजन नसीब नहीं होता। यानी इतनी बड़ी आबादी भूखी रहती है। आज जहाँ वेतन का पैकेज 15-20 लाख रुपये का सामान्य हो गया है। हर माह एक करोड़ रुपए या और अधिक वेतन पाने वालों की तादाद भी लाखो की हो गयी है। वहीं 91 फीसदी भारतीयों का मासिक वेतनमान 15 हजार रुपये से भी कम है। यानी करोड़पतियों के इस इंडिया में 90 फीसदी गरीब भारतीयों की हालत वालों का भारत कैसा है। मॉल मेट्रो मोबाइल मल्टीप्लेक्स मल्टीनेशनल कंपनी मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट मोटर मल्टीमीडिया और मल्टीलेवल मल्टी रिलेशन कल्चर में गरीब भारत की पहचान इंडिया की चकाचौंध में खोती जा रही है। और यह तबका अपनी सामाजिक हैसियत भी खो रहा है।
10/ तेल की कीमतों में गिरावट का नाटक

प्रधानमंत्री की पहल और सख्ती के बाद बेलगाम तेल कंपनियों ने तेल की कीमतों में गिरावट का सिलसिला आरंभ कर दिया है। वो भी इसमें तरह कि दिसम्बर के दूसरे सप्ताह तक कोई तेल की कीमतों में 7-8 रूपयों की कमी आ जाएगी। मुंबई में तेल का दाम 82-83 रूपये रहेगा तो पूरे भारत में यही रेट 73-74 का हो सकता है। यानी तेल की कीमतों को लेकर बिलबिला रहे तमाम लोग एकदम शांत हो जाएंगे। तेल कंपनियों को खुश करने और घाटे की भरपाई के लिए पीएमओ ने हाफ दिसम्बर से लेकर मार्च 2018 तक तेल की कीमतों में बढोतरी करते हुए फिर 82-90 के बीच धीरे-धीरे ले जाने की छूट दे दी है। यानी लोकसभा चुनाव की प्रसव पीड़ा को देखते हुए मीनी चुनाव में पब्लिक मूड को काबू रखने के लिए पूरे देश को पेनकिलर के साथ तेल दिया जा रहा है। मीनी चुनाव एपिसोड के खात्मे के साथ ही तेल के खेल में तेल की धार को देखने का अलग आनंद आएगा। जय हो तेल बाबा की।

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