बुरा न मानो चुनाव है / अनामी शरण बबल

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1/ मोदी से बैर नहीं पर राज रमण और राजे की खैर नहीं।

 : पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने की घोषणा के साथ ही कमल शासित तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों का रक्तचाप आसमान पर पहुंच गया है। खासकर चुनावी सर्वेक्षणों में भी कमलिया सरकारों के खिलाफ लहर जाहिर हो गयी है। खासकर रेगिस्तानी राजस्थान में कभी भी कोई सरकार लगातार दो बार सत्ता में नहीं रही है। साढे़ चार साल महारानी की तरह जनता से कटकर शासन की। और अंतिम महीनों में भी यात्राओं के बूते सता हासिल करने में लगी हैं। चारों तरफ विरोधी लहर के सागर में कमल संग महारानी का विजय राज रथ का सफर बहुत कठिन सा है। तो केवल हवाई घोषणाओं और अखबारी विज्ञापनों के बूते छवि चमकाने वाले डॉक्टर मुख्यमंत्री के शासन में भी राज्य बीमार है। बेकारी बीमारी बदहाली नोटबंदी से औधोगिक इकाइयों की बंदी नक्सलियों के आतंकी साये के सामने पराजित सरकार से जनता का विश्वास खत्म हो गया है। लस्त पस्त नागरिक सुविधाओं से भी पूरे सूबे का बुरा हाल है। विकास की पटरी से उतरी हुई शासकीय हालात के विरोधी तेवर के सामने डॉक्टर के लिए सता का चौका लगाना मुमकिन नहीं लगता है। तो पूरे मध्यप्रदेश में मामाजी के नाम से विख्यात शिव का राज भी सांसत में है। घोषणा मुख्यमंत्री के रूप में भी विख्यात मामा मुख्यमंत्री की अनगिनत वायदे ही इनको लज्जित कर रहा है उसपर व्यापम घोटाले की आंच से जनता के बीच मामा निरूतर है। साधू संत महात्माओं को मंत्री का दर्जा देकर मामाजी मजाकिया बन चुके हैं। जनता की उम्मीदों पर नाकाबिल होने के बाद भी अमरीका में जाकर मामाजी सूबे की सड़कों को अमरीका से बेहतर की घोषणा करके अपनी और सूबे की जग हंसाई का पात्र बना डाला। देखना है कि सता की चौथी पारी खेलने के चक्कर में जनता कहीं इनको मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है….? का गाना न सुना दे।
2  / योगीराज चुनाव मुद्रा
विधानसभा चुनाव भले ही इस समय उत्तरप्रदेश में नहीं हो रहा है मगर तेजतर्रार वाचाल चपल चतुर मुख्यमंत्री अभी से सपाई दुश्मनों को गोद लेना चालू कर दिया है। सरकारी संपति को अपने गोरखधाम की जागीर समझकर बंदरबांट करने लगे हैं। नेताजी के भाई के भतीजे की सल्तनत से बाहर आते योगीराज ने पूर्व मुख्यमंत्री बहनजी के बंगले की चाबी थमा दी। और तो और अपने इलाके के तानाशाह राजा रजवाड़ों के परिवारी होने के बाद भी बाहुबली राजा भैय्या के स्वागत में योगीराज मुख्यमंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश का शानदार राजा जी के चरणों में समर्पित कर दिया। शानदार सरकारी बंगले के बूते अपना चुनावी अंकगणित साध रहे योगी का एनकाउंटर इमेज खोखला गया। दबंगों को बंगले के बूते थामने का यह खेल जनता को पसंद नहीं आया। देखना है कि गोरखधाम संभालते थामते यूपी नरेश बन बैठे योगी का यह चुनावी योग मुद्रा कहीं पोलिटिकल सेहत के लिए नुकसानदेह न हो जाए।
3/ अमर सिंह का नया पैंतरा   
   समाजवादी पार्टी के नेताजी के संग राजनीति की सबसे लंबी और विवादित पारी खेलने वाले ठाकुर नेता कभी परास्त नहीं हुए हैं। सेहत के सामने कमजोर निर्बल हो चुके ठाकुर में दमखम पहले जैसा नहीं रहा इसके बावजूद तेवरों में अकड़ बाकी है लंबे समय से खबरों से गायब ठाकुर साहब विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही फिर एक्टिव हो गये हैं। रामपुर से सपा विधायक और हिंदी बेल्ट के सबसे विवादित मुस्लिम नेता बनने के फिराक में लगे पूर्व मंत्री की गलत बयानी और हिंदू विरोधी बातो के खिलाफ ठाकुर ने ताल ठोक कर सडको पर उतर गये हैं। अब दिलचस्पी लोगों की इस बार यही है कि ठाकुर साहब के पीछे कौन है? किसके भरोसे राजनीति का यह अमरबेल फिर से पावर बम बनकर ब्लास्ट के लिए आमादा हैं।
4   राममंदिर निर्माण नाटक फिर चालू
    अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण कराने का मुद्दा हमेशा सर्वोच्च होकर भी उपेक्षित रहा। इसी भरोसे सता हासिल करने के बाद साढे़ चार साल तक इसको सब भूल जाते हैं। मगर चुनावी आहट के साथ ही फिर से इसे गरमाया जाता रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है फिर भी सारे जेबी संत महात्मा भी एकाएक प्रज्ज्वलित होकर मंदिर मुद्दे पर आंदोलित हैं। कोई 6 दिसम्बर से निर्माण आरंभ करने की चुनौती दे रहे हैं तो कोई सरकार की सुस्ती पर बौखलाये से हैं। इसी बीच संघी प्रधान ने मंदिर बनाने के लिए कानून बनाने की घोषणा करके इस नाटक में नया मोड़ दे दिया है। संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार कोई अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण कार्य के लिए समय सीमा आगे ले जाए। यानी अपनी तमाम विफलताओं पर पर्दा डालकर फिर से माहौल को उत्तेजित करने का दौर शुरू होगा। वोटरों को अलग खेमा में लाने का कुटिल नाटक का स्क्रिप्ट लिखने की योजना बनाई जा रही है। देखना यही है क्या काठ की हांडी से सता पाने की तीसरी चेष्टा कारगर होगी या सबकुछ जलाकर….बेआबरू करेगी।.?
   5/ दिल्ली में ही अटकी है आयुष्मान भारत 
   राष्ट्रीय स्तर पर देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत का पहिया दिल्ली में अटकी है एनसीआर दिल्ली की आप सरकार इसको मुख्यमंत्री आम आदमी स्वास्थ्य बीमा आयुष्मान भारत योजना के नाम से आरंभ करना चाहती है। बैठकों के कई दौर के बाद भी अरविंद केजरीवाल सरकार इसको आयुष्मान भारत के नाम से लागू करने पर कोताही बरत रही है तो एनडीए सरकार इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में किसी राजनीतिक दल के नाम को जोड़ने के खिलाफ है। चूंकि राष्ट्रीय योजनाओं को रोकना किसी भी सरकार के लिए मुमकिन नहीं है मगर मामले को जितना हो सके विवादित करने की रणनीति पर लगे केजरीवाल एंड कंपनी का क्या हाल होगा यह तो केवल जनता ही सबक सीखा सकती है।
 6/आप कंपनी का मालिक मैं हूं
: ईमानदारी लोकायुक्त और अलग तरह की राजनीति करने का दम भरते हुए और अन्ना के पीठ पर सवारी करके दिल्ली एनसीआर की सता पर सवार आम आदमी पार्टी एक कंपनी हैं। जी हां यह कोई पोलिटिकल पार्टी नहीं है। जी यह कहना है इसके सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का। पार्टी से बडे़ बड़े चेहरे बेआबरू होकर निकले। पंजाब में दो एक सांसद समेत कुछ विधायकों की मनमानी से अरविंद उद्वेलित है। अपने सदस्यों को संबोधित करते हुए साफ़ ऐलान किया कि आप कोई पार्टी नही है बल्कि यह हमारी एक कंपनी की तरह है किसको रखना है या किसको निकाल बाहर करना है इसका फैसला कैवल्य मैं करूंगा। अपने आप को आप का सीईओ मानकर सबसे अलग अपनी शर्तों पर शासन कर रहे इस सीईओ को जनता पसंद करेगी या नहीं यह केवल पब्लिक फिक्स करती है। जनता की कसौटी पर कंपनी के सीईओ की सांस चलती है अथवा.. ? इसका जवाब केवल समय ही दे सकता है।
 7/ इस विज्ञापन का सच क्या है?
         मैं  ईमानदारी लोकायुक्त और अलग तरह की राजनीति करने का दम भरते हुए और अन्ना के पीठ पर सवारी करके दिल्ली एनसीआर की सता पर सवार आम आदमी पार्टी एक कंपनी हैं। जी हां यह कोई पोलिटिकल पार्टी नहीं है। जी यह कहना है इसके सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का। पार्टी से बडे़ बड़े चेहरे बेआबरू होकर निकले। पंजाब में दो एक सांसद समेत कुछ विधायकों की मनमानी से अरविंद उद्वेलित है। अपने सदस्यों को संबोधित करते हुए साफ़ ऐलान किया कि आप कोई पार्टी नही है बल्कि यह हमारी एक कंपनी की तरह है किसको रखना है या किसको निकाल बाहर करना है इसका फैसला कैवल्य मैं करूंगा। अपने आप को आप का सीईओ मानकर सबसे अलग अपनी शर्तों पर शासन कर रहे इस सीईओ को जनता पसंद करेगी या नहीं यह केवल पब्लिक फिक्स करती है। जनता की कसौटी पर कंपनी के सीईओ की सांस चलती है अथवा.. ? इसका जवाब केवल समय ही दे सकता है।
8/चुनाव भाजपा और प्याज
   चुनावी लहरों के तापमान में अभी गरमी आई नही कि पाकिस्तान में एक बार फिर मोदी के खिलाफ विज्ञापनों की आंधी चलने लगी है। पाकिस्तान में कांग्रेस के फेसबुक पेज पर भारत बचाओ और मोदी हटाओ कै विज्ञापनों का दौर आरंभ हो चुका है। कांग्रेस इसके लिए भाजपा पर अपने प्रचार के लिए खुद ही अभियान चलाने का आरोप लगा रही है तो उधर भाजपा कांग्रेस पर विपक्षी संस्कृति संस्कार को भूलकर चुनाव अभियान को पाकिस्तान में ले जाने का दोष मढ रही है खबर है कि इन विज्ञापनों का स्पांसर कोई पाकिस्तानी है। कौन किसके लिए कौन सा गेम प्लान करके पब्लिक को मूर्ख बना रही है। इसका फैसला तो स्पांसर के पोस्टमार्टम करके ही पता चलेगा मगर यह साबित हो गया है कि सोशल मीडिया नेटवर्क का किसी भी तरह के उचित अनुचित इस्तेमाल को लेकर राजनीतिक दलों की सारी नैतिकता अब खत्म हो गयी है।
चुनाव भाजपा और प्याज – प्याज भाजपा और चुनाव का त्रिकोण तय कभी भी कमल के लिए लाभदायक नहीं रहा है। 1998 विधानसभा चुनाव में मंहगे प्याज की मंहगाई की मार इतनी तीखी और कंटीली रही कि बीस साल बीत जाने के बाद भी भाजपा को फिर दिल्ली की गद्दी नसीब नहीं हुई। इधर पांच स्टेट में विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई नहीं कि एकबार फिर बिक्रम बेताल के बैतलवा की तरह प्याज फिर गंधानै लगा। प्याज की उपज पर पानी की कहीं कमी तो कहीं जलप्रलय से प्याज की उपज बाधित रही। देखते ही देखते 20-25 रुपये किलो में सहज उपलब्ध प्याज देखते ही देखते 35-40 रुपये प्रति किलो पर भाग गया। मंडी पंडितों का अनुमान है कि प्याज की यह किल्लत अभी दो ढाई महीने तक रहेगी। यानी पांच स्टेट के चुनावी परिणाम आने तक प्याज की रूलाई से पब्लिक त्रस्त रहेगी। यानी पार्टी भी प्याजी हमले के खिलाफ कोई काट की तलाश में है।
  9 – ठाकरे और जोगी की घोषणा का सच ?
        महाराष्ट्र के टाईगर यानी बाला साहब ठाकरे की गूंज से कभी पूरा प्रदेश कंपित होता था। इनके बाद उद्धव ठाकरे ने कमान संभाली और शिवसेना को सक्रिय रखने की कोशिश में लगे हुए हैं। बाल ठाकरे की तरह अपने निवास मातोश्री को ही पार्टी मुख्यालय बनाकर घर से ही देश की राजनीति कर रहे हैं। बिग ठाकरे की तरह ही जूनियर ठाकरे भी किसी से मिलने कहीं नहीं जाते। सामने वाला कोई भी हो उसको मातोश्री में ही आना होता है अयोध्या मंदिर मुद्दे पर अपनी जुबान खोलते हुए पहली बार कहा कि यह भी कोई जुमला न बनकर रह जाए। सालों के बाद जूनियर ठाकरे पहली बार अगले सप्ताह अयोध्या जाएंगे। तो पंजा से पल्ला झाड़कर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले 36गढ के पहले मुख्यमंत्री इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। कहां तो बसपा बहिन जी की पहली पसंद होकर भी जोगी का यह पैंतरा किसके लिए लाभदायक होगा इसके इर्द-गिर्द ही अब सूबे की राजनीति चक्कर काटेगी। जोगी के पीछे कौन है यही जानने में अब सबकी रूचि है? और जोगी की चाल से हाथी की चाल पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसको देखना दिलचस्प होगा।
  10 : – तेल की धार देखो या तेल का खेल?
                 पेट्रोल डीजल के बेकाबू कीमतों पर लगाम लगाना ही सरकार के लिए सबसे बड़ी दिक्कत बनी हुई है। कंपनियों को ही कीमतें निर्धारण का अधिकार मिलने के बाद से ही यह सरकारी नियंत्रण से बाहर हो गई है। कई मंत्रियों के प्रेशर के बाद भी तेल की धार और खेल को लेकर पब्लिक की देनिक रुचि रोष और उलाहना जारी था। सरकार ने तेल की कीमतों में ढाई रुपये की कटौती करा दी। चुनाव के दौरान कीमतों पर नियंत्रण की घोषणा के बाद भी कीमतों को लेकर तेल का खेल जारी रहा। तब प्रधानसेवक को अपने पावर और सख्त लहजे का इस्तेमाल करना पड़ा। तब जाकर तेल के भाव उपर जाने की बजाय अब नीचे आ रहा है। कीमतों में एक पैसे की कमी करने पर तेल कंपनियों को लगभग बारह करोड़ रूपये का नुकसान झेलना पड़ता है। देखना है कि घाटे की लौ से लाचार तेल कंपनियां पोलिटिकल पावर की मार झेलती हैं या तेल की धार से राजनीतिक लाभ की नीतियां ही चलती रहेगी। जिसका खामियाजा अंतत तेल कंपनियों को ही भुगतना पड़ता है।/      कटाक्ष राजनीति
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