गुजरात दौर में मोदी ने आवास योजना के तहत दिए सर्टिफिकेट, कहा बहनों को रक्षा बंधन का तोहफा

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वलसाड, गुजरातदो दिन के गुजरात दौरे में गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को वलसाड में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के लाभार्थियों को सर्टिफिकेट बांटे। यहां उन्होंने कहा कि आज दिल्ली से एक रुपया निकलता है तो लोगों तक पूरे 100 पैसे पहुंचते हैं। इसी से हमारी योजनाएं कामयाब हो रही हैं। मैं अभी टीवी और अखबार वालों के सामने हिम्मत से पूछ सकता हूं कि आपको (लाभार्थियों को) कहीं रिश्वत तो नहीं देना पड़ी। मुझे उनकी आंखों में संतोष तब दिखता है, जब वो कहती हैं कि हमें अपना हक का मिल गया। हमें किसी को एक नया रुपया नहीं देना पड़ा।

नरेंद्र मोदी ने कहा कि रक्षाबंधन का पर्व सामने हो और गुजरात में एक लाख से भी अधिक परिवारों को, बहनों को उनके नाम से अपना घर मिले, मैं समझता हूं कि रक्षाबंधन का इससे बड़ा उपहार नहीं हो सकता। घर ना होने की पीड़ा क्या होती है, जिंदगी कैसे गुजरती है, भविष्य कैसा अंधकारमय होता है, हर सुबह बहनें एक सपना लेकर उठती हैं, शाम होते-होते सपना मुरझा जाता है। झुग्गी-झोपड़ी में जिंदगी गुजारनी पड़ती है।

अपने घर से सपने सजने लगते हैं

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- “जब अपना घर होता है तो सपने भी सजने लगते हैं और सपने भी अपने बन जाते हैं। उन सपनों को पूरा करने के लिए पूरा परिवार परिश्रम करने लग जाता है और जिंदगी बदलना शुरू हो जाती है। इस रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार के पूर्व सभी माताओं-बहनों को, एक लाख से अधिक परिवारों को घर की सौगात देकर आपके भाई के रूप में मैं बहुत संतोष अनुभव कर रहा हूं।”

अब लाभार्थी तक 100 पैसे पहुंचते हैं

मोदी ने कहा, “मैं हर जिले में महिलाओं से मिला। मैं बात तो सबसे करता था लेकिन मेरी नजर उनके घर पर थी। आप सबने देखा होगा कि सरकारी योजना में इतने अच्छे घर कैसे बन सकते हैं। इसकी वजह है कि केंद्र से जो 1 रुपए निकलता है उसके 100 पैसे लाभार्थी को पहुंचते हैं। पीएम आवास योजना के तहत इन मकानों की क्वालिटी जब हम देख रहे थे तो लोगों को लगा कि ऐसे भी घर हो सकते हैं क्या? यह सही है कि घर के लिए सरकार ने पैसे दिए, लेकिन मकान में उन्हें बनाने वालों का भी पसीना लगा है।”

पानी का संकट महिलाओं को ही झेलना पड़ता है

मोदी ने कहा, “600 करोड़ रुपए की योजना की हमारी माताओं-बहनों को सौगात दे रहा हूं। पानी का संकट सबसे ज्यादा हमारी माताओं-बहनों को ही झेलना पड़ता है। उन्हें ही परिवार के लिए पानी का पूरा प्रबंध भी करना पड़ता है। पीने का शुद्ध जल परिवार को अनेक बीमारियों से बचाता है। मैंने जीवन के कई वर्ष इस आदिवासी क्षेत्र में गुजारे हैं। मेरे मन में हमेशा ही यह सवाल उठता है कि यहां खूब बारिश होती है, लेकिन दीवाली के बाद यहां लोगों को पानी के तरसना पड़ता है।”

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