अटल जी, क्या भूलूं, क्या याद करूँ…

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कुमार राकेश: अटल बिहारी वाजपेयी, भारत के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके, लोक नेता, जन नेता और विश्व नेता अपने अटल जी. अटल जी की चर्चा आते ही एक दिव्य व्यक्तित्व का सागर सामने आ जाता है. हरफन मौला, बेबाक और अपने फन पर फनाह होने वाला एक ऐसा शख्स, जो सिर्फ एक युग में पैदा होता है. वो शारीरिक तौर पर इस धरा पर है या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु उन जैसी आत्मा की आभा सदैव इस धरती पर बनी रहे, ये अपेक्षा है उनसे और परम पिता परमेश्वर से. अटल कही गए नहीं आज भी हमारे आसपास है और सदा रहेंगे. उनके साथ मेरे सैकड़ों संस्मरण है, क्या भूलूं, क्या याद करूँ! क्या लिखूं, क्या नही लिखूं, फिर भी नही लिखूंगा तो स्वयं को हो माफ़ नहीं कर पाउँगा.

सच में मौत से ठन गयी थी अटल जी की. विगत 13 वर्षों से अवचेतन अवस्था में जीना, वो भी क्या जीना था. मगर वे जिए, खूब जिए मौत से लड़े खूब लड़े जमकर लड़े निश्चिन्त भाव से लड़े, अपनी साँस की अंतिम कड़ी तक लड़ते रहे लड़ते रहे और फिर चल पड़े चिरंतन यात्रा की ओर. अपने अटल जी आपके अटल जी हमारे अटल जी देश के अटल जी विदेशो के अटल जी भारत के अटल जी और घोर दुश्मन पाकिस्तान के भी अटल जी. आखिर क्या जादू था हम सबके अटल जी में सच में वे एक युगपुरुष थे सडक से संसद तक लोकप्रिय एक आम जन नेता अटल जी.

सदैव रहेंगे हम सबके दिल में मेरे भगवन जी हम दोनों एक दूसरे को इसी शब्द से पुकारते थे और अभिवादन किया करते थे. जब भी मिलते आमना-सामना होता सचमुच ख़ुशी की ऊर्जा के सागर थे अपने अटल जी.

आज अटल जी के साथ के कुछ संस्मरणों की तरफ देखता हूँ, महसूस करता हूँ तो एक दिव्य विशाल मानवतावादी शख्शियत की तस्वीर उभरती है. एक पत्रकार, राजनेता, जन नेता, विश्व नेता, कूटनीतिज्ञ, हरफनमौला और हर हाल में मुस्कुराने वाला व्यक्तित्त्व था अपने अटल जी का.

1990 में मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई, एक पत्रकार के नाते मिलवाए थे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और उपाध्यक्ष कृष्ण लाल शर्मा जी. उसके बाद जो मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ, वो 2005 के करीब अवचेतना अवस्था तक जारी रहा. उनकी वजह से उनके सबसे करीबी शिव कुमार पारिख जी का अनुपम स्नेह मिलता रहा जो आज भी है.

1991 के चुनाव में अटल जी दो स्थानों से लोक सभा चुनाव जीते थे. विदिशा और लखनऊ से जीतने के बाद उनकी एक प्रेस वार्ता रखी गयी. आयोजन भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्ण लाल जी शर्मा ने किया था. प्रेस वार्ता के बाद भोजन का भी प्रबंध था. भोजन के बाद ज्यादातर पत्रकार चले गए थे हम दो-तीन रह गए थे. कुछ विशेष खबर की खुराक के लिए, जिसके लिए अटल जी अपने पत्रकार बिरादरी में मशहूर थे. क्योंकि एक राजनेता होने के बावजूद उनके अन्दर का पत्रकार सदैव जिन्दा रहा, उनके अन्दर भोजन के अंतिम चरण में मिष्टान्न के साथ हम सब की उनसे वार्ता शुरू हुई. मैंने पहल की सर, कुछ एक्सक्लूसिव खबर तो दे दीजिये. इस पर बड़े मुस्कुराते हुए आनंदित मुद्रा में उन्होंने कहा–पूछो; क्या पूछना है? मैं तो तैयार था उस वक़्त मैं मध्य प्रदेश के अखबार “नई दुनिया” से जुड़ा था मैंने पूछा, आप दो स्थानों से लोक सभा चुनाव जीते हैं कौन सी सीट रखेंगे-विदिशा या लखनऊ. इस पर उनकी भवें तनी, चेहरे पर कई भाव तेजी से आये-गए. फिर चिर परिचित मुद्रा में हाथ नचाते हुए बोले-ये मेरा निजी मामला है क्यों बताऊ? बगल में खड़े कृष्ण लाल जी मंद मंद मुस्कुरा रहे थे. हम सबने उनसे मनुहार किया और अनुरोध किया कि अटल जी, एक खबर का सवाल है. उस वक़्त मेरे साथ दो अन्य मित्र भी थे, जिनमे से पीटीआई के श्रीकृष्ण एक थे.

उसके बाद अटल जी चिंतन मुद्रा में चले गए फिर मेरे को कहा तुम्हारे अखबार में क्या लिखा जाता हैं, पसोपेश, कशमकश, उहापोह, उधेड़बुन मैंने कहा पसोपेश और कशमकश दोनों वाक्यों के अनुरूप उपयोग किये जाते हैं. फिर वे अपने मूड में आये बोले लिखना अटल बिहारी पसोपेश में; मैंने जोड़ा–विदिशा छोड़े या लखनऊ. इस पर उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और आशीर्वाद मुद्रा में बोले–बहुत खूब. फिर मैंने कहा वे विदिशा छोड़ेंगे, इस पर वे चुप हो गए. फिर कहा ये तो मैंने नहीं कहा, फिर मैंने कहा अपने बिलकुल नहीं कहा मेरे विश्वस्त सूत्रों से बताया. फिर वे बोले–वो कौन है तुम्हारा विश्वस्त सूत्र मेरे को बताओ. इस पर मेरा प्रति प्रश्न था; वो मेरे सामने खड़े हैं. फिर वे हँसे ठहाका लगा कर खूब जोर से वाह भाई वाह बहुत खूब मेरा फार्मूला मेरे पर ही. इस पर मैंने अनुरोध मुद्रा में विनती की अब मेरी खबर पुष्ट हो गयी? फिर वे बोले जो तुम समझो, मैंने कुछ नहीं बताया. इस पर मैंने कहा, जय हो हमारे पुराने संपादक की. अगले दिन का मैं हीरो बन सकता हूँ, आपके आशीर्वाद से. फिर उन्होंने कहा; तथास्तु. फिर क्या था अगले दिन की लीड खबर “अटल जी पसोपेश में, विदिशा छोड़े या लखनऊ”. लेकिन वे विदिशा छोड़ेंगे लखनऊ से सांसद रहेंगे, ऐसा उनके करीबी सूत्रों का दावा है. बाकी तो पैडिंग-तथ्य फिर उनका बुलावा आया, दूसरे दिन और उन्होंने आशीर्वाद दिया जाओ तुम्हारी खबर सच साबित होगी. मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रहा था. कितने विशाल ह्रदय थे अटल जी और उनका पत्रकारिता का भाव !

उसके बाद देश की राजनीति में “अयोध्या काण्ड” हुआ. 6 दिसम्बर 1992, उस शाम को मैंने उनसे इजाजत ली. मिलने की क्योंकि मुख्यालय से मुझ जैसे जूनियर रिपोर्टर को अयोध्या जाने की अनुमति नहीं मिली थी. फिर मैंने सोचा चलो कुमार राकेश, दिल्ली से ही कुछ हंगामा किया जाये. फिर अटल जी याद आये क्योंकि वो दिल्ली में ही थे. कुछ कारणों से और कई कारणों से. लखनऊ में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से हर पल की रिपोर्ट ले रहे थे. शाम को वो बहुत तनाव में दिखे, कुछ उदासीन मुद्रा भी. मेरे बाद आईएएनएस के तरुण बसु भी उनसे मिले थे, अंत में जनसत्ता के प्रधान सम्पादक प्रभाष जोशी जी के साथ उनकी बैठक थी. सबसे पहला साक्षात्कार करने का सुअवसर मिला मेरे को. अयोध्या कांड के बाद, फिर मुख पृष्ठ जो-जो बताया वो अपने आप में मील का पत्थर हैं.

अटल जी रवैया सदैव उदारवाद का रहा कट्टरता उन्हें पसंद नहीं थी. फिर भी वो आजीवन अपने कार्य और नीतियों से देश पर सुशासन किया. सुशासन को एक नया आयाम दिया, नयी परिभाषा दी. आज के प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी जी उनकी आँखों के तारे थे. 1994 के बाद ही भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में मोदी-महाजन जुगलजोड़ी बड़ी मशहूर हुई. हालाँकि इस जोड़ी को आगे बढाने में पूर्व उप प्रधान मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की भी अहम भूमिका थी.

अटल जी आज कल के निर्दयी राजनीति में रहते हुए बड़े ही सम्वेदनशील और जागरूक थे जन भावनाओ को लेकर. 1995 में जैन हवाला डायरी कांड की गूँज थी, प्राय: सभी दलों के राजनेताओ का नाम उस घूस डायरी में उजागर हुआ. यहाँ तक लाल कृष्ण आडवाणी का नाम भी आया. हालाँकि श्री आडवाणी बाद ने बाईइज्ज़त बरी हुए. उसमे कांग्रेस, जनता दल से लेकर करीब करीब सभी दलों के नेताओं के नाम चर्चा में रहे. अटल जी इस मसले पर काफी व्यथित थे. वह किसी से बात नहीं कर रहे थे. कोई इंटरव्यूज नहीं, सब शांत. एक दिन शिवकुमार जी से बात कर अनौपचारिक मिलने के लिए समय माँगा. साथ में कॉफ़ी और कविता की मांग भी थी हमारी. बाद में नवभारत टाइम्स के श्रीकांत शर्मा भी वहां पहुँच गए थे. अटल जी बड़े चिंतित और तनाव मुद्रा में दिखे थे. जब हम मिले तो बोले, ‘आज की कोई भी बात न तो बाहर जाएगी और न ही छपेगी’. हम दोनों ने उनके इस अनुरोध को आदेश माना. फिर वे खूब बोले देश की सड़ी-गली व्यवस्था पर टीका टिपण्णी का तो जवाब नहीं. अंत में कहे गए वे वाक्य आज भी मेरे कानों में गूंजती है – सोचो राकेश “यदि उन जैन बंधुओं का कोई रुपयों का एक पैकेट मेरी या शिव कुमार की जीप में रख देता और उस कांड में मेरा भी नाम आ जाता तो क्या अटल, अटल रह पाता”. ये कहते-कहते उनका गला रूंध सा गया. उन्होंने देश में चुनाव सुधार विधेयक को पारित नहीं होने देने के लिए सभी दलों को कोसा था. ऐसी सम्वेदनशील थे हमारे अटल जी.

उनके लिए सभी एक जैसे थे. समानता उनकी शैली थी और आत्मीयता उनका स्वाभाव. एक बार मेरी और उनकी ठन गयी थी, वह संसद में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष थे. एक खास खबर को लेकर, बाद में उनका आशीर्वाद मिला जब उनके सामने मेरा सच लाया गया.

एक बार एक वाकया गुजरात से जुड़ा हैं वो भी हमारी एक्सक्लूसिव खबर थी. जिसमें अपने आईएएस मित्र चित्तरंजन खेतान की बड़ी भूमिका रही. श्री खेतान आज की तारीख में छतीसगढ़ सरकार में अपर मुख्य सचिव हैं. गुजरात राजनीति में शंकर सिंह बाघेला कांड हो गया था पर बाघेला जी किसी का कोई सम्पर्क नहीं हो पा रहा था. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, सारा सम्पर्क कट कर दिया गया था. हम दो रिपोर्टर 6, रायसीना रोड (अटल जी का आवास) पहुंचे. उद्देश्य-खबर की तलाश थी, पर हम सबको खबर बनाने के लिए काफी जहमत उठानी पड़ी थी. उस विशेष और वास्तव में ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए हम आज भी अपने मित्र श्री खेतान के शुक्रगुजार है, अटल जी ने श्री खेतान को भी आशीर्वाद दिया था.

अटल जी कवि ह्रदय होने के साथ साथ घोर मानवतावादी थे. बराबरी को सदा तरजीह देते रहे. जब तक यादाश्त रही मस्त रही, जब नहीं रही तो वो हम सबको अस्त –व्यस्त कर गए.

2004 के उनके प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद के एक वाकये को तो भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन आज भी नहीं भूले हैं. उस दिन तो पता नहीं मेरे को क्या हो गया था, शायद अगस्त-सितम्बर का रमजान का महीना था. हिन्दू के सबसे बड़े धर्म गुरु कांची कामकोटी के शंकराचार्य को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जय ललिता ने एक बहुत भद्दे आरोप में गिरफ्तार कर लिया था और उस दिन हिन्दू ह्रदय सम्राट श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सरकारी आवास 6-A कृष्ण मेनन मार्ग नई दिल्ली पर इफ्तार का आयोजन किया था. हालाँकि आयोजनकर्ता शाहनवाज़ जी थे. उस आवास के बीचों बीच एक मंडप नुमा बैठने की व्यवस्था थी. अटल जी वहां पर बैठे थे, सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे. मैं भी आमंत्रित था मन में कई प्रकार के उथल पुथल वाले भाव थे. जाते ही मैंने नमस्कार किया; बोला जय हो भगवन की, आपको बड़ा आनंद आ रहा होगा. वहां  पर शंकराचार्य जेल में और आप इफ्तार मना रहे हैं, जय हो हिंदुत्व की. वास्तव में उस दिन मैं बहुत ही व्यथित था, यदि शंकराचार्य की जगह कोई मुसलमान नेता या कोई अन्य अल्पसंख्यक नेता के साथ वो घटना होती तो विश्व में कोहराम मच गया होता. मैंने माननीय अटल जी से पुछा था. क्या उनकी जयललिता से बात हुयी, क्या शंकराचार्य जी से कोई बात हुयी. उन्होंने कहा– नहीं पर मेरा वो कटु सवाल सुनकर वे सोच में पड़ गए. पास में अरुण जेटली और नीतीश कुमार भी खड़े थे. सब देख-सुन रहे थे पर चुप थे. पर भला हो उस विशाल ह्रदय अटल जी का, उन्होंने फौरी तौर पर शंकराचार्य और जयललिता से बात की और बाद में उन्हें रिहा किया था. तो ये भी एक मृदुल स्वाभाव और सच को स्वीकारने की हिम्मत, जो सिर्फ अटल जी में ही था.

वैसे तो अटल जी जुड़े मेरे पास सैकड़ों संस्मरण हैं, एक एक संस्मरण एक उपन्यास हो सकता है. लेकिन अटल जी ने जो राष्ट्र धर्मं का निर्वहन किया और राज धर्म का जो पालन किया, शायद अब आने वाले वक़्त में किसी से सम्भव नहीं दीखता. उन्होंने सिध्हंत की राजनीति तो की ही, राजनीति को व्यावहारिक तौर पर सिध्हांत बनाया. कब, किसको, कैसे, कितना और क्यों प्यार करना है, उसके लिए अटल जी एक विश्वविद्यालय से कम नहीं थे. सबको बढाया, सबको सिखाया पर निस्वार्थ भाव से.

अटल जी एक देश नहीं थे, बल्कि पूरे विश्व थे. भारत देश की राजनीति में उनकी तिकडी थी. उस तिकड़ी में भाजपा, कांग्रेस और समाजवाद था. उसका एक फोटो भी मेरे पास है. मैं कई अवसरों पर देखा भी, बोला भी, जिसको उन्होंने स्वीकारा भी, वो भी तहे दिल से. अटल जी, नरसिम्हा राव और चन्द्र शेखर की ये तिकड़ी. तीनो में गज़ब की परस्पर समझ थी. अब तीनो नहीं रहे. जब अटल जी प्रधान मंत्री बने तो नरसिम्हा राव की पुस्तक “इनसाइडर“ का विमोचन किया. जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तो “अटल की चौवन कवितायेँ“ पुस्तक का विमोचन किया. जिसकी पहली प्रति प्राप्त करने का सौभाग्य मेरे को प्राप्त हुआ, जो मेरे से वो पुस्तक राजस्थान की भाजपा नेता वसुंधरा राजे लेना  चाहती थी, लेकिन अटल जी के निर्देश पर वो पहली पुस्तक उनकी हस्ताक्षर के साथ मेरे को मिली. अब कहाँ वो अटल जी वाला अपनापन, वो भी आज के राजनेताओ में जो शायद ही आज किसी नेता में मिलता हो.

अटल जी अटल है, मृत्यु अटल है, उन्होंने वास्तव में मौत से रार कर लिया था, अंत तक हार नहीं मानी. अटल जी ने कहा था– मैं जी भर जीया, मैं मन से मरुँ, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरुं. सच में अटल जी, आप हैं इसी धरती पर, इसी माहौल में, हम सब के बीच, शायद आने वाले दिनों में हमें एक नहीं कई अटल मिलेंगे, अपने अटल विचारों के साथ…शत शत नमन…अटल जी को शत शत नमन..!

(कुमार राकेश, प्रधान संपादक जीजीएन ग्रुप। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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