पाकिस्तान की गिरती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना खान के लिए बड़ी चुनौती

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पाकिस्तान कई तरह से संकट मे है. आतंकी वहां हर दिन और हर प्रांत में जब चाहे और जैसे चाहे लोगों को मार रहे हैं. बलूचिस्तान अपनी स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों से लड रहा है. खैबर पख्तुनवा बेचैन है. पाकिस्तान के कब्जे वाला काश्मिर और सिंध दमन से परेशान हैं. कट्टरपंथी वहां पर शरीया का राज्य चाहते हैं और गजवा ए हिंद (भारत पर अंतिम विजय) के दिवास्वप्न देखते हैं. लेकिन आज हम इससे हट कर उस विषय के बारे में जानेंगे जो किसी भी देश को बिना युद्ध के नष्ट कर सकता है. वह विषय है उस देश की अर्थव्यवस्था. हम पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था और उसका भारत पर परिणाम देखेंगें.

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में कुछ मापदंड और उनके हाल ही के आंकडें महत्वपूर्ण होते हैं. इन मापदंडों के  ताजे आंकडें उस देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ की ओर संकेत करते हैं. उन आंकडों को और उनके परिणामों को समझना जरूरी है. अर्थव्यवस्था के कुछ जरूरी मापदंड हैं सकल घरेलू उत्पाद, करंट अकाउंट डिफिसिट और भुगतान का संतुलन. इनके अलावा किसी भी देश का विदेशी मुद्रा भंडार उस देश की अर्थव्यवस्था को मापने हेतु महत्वपूर्ण है.

स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत से अच्छी थी क्योंकि उसने शुरू से ही ओपन मार्केट व्यवस्था को अपनाया जबकि भारत ने कम्युनिझम और समाजवादी किस्म की अर्थव्यवस्था अपनाई थी. समय के साथ सब कुछ बदल गय़ा. भारत अब एक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था बन गया है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किसी भी बडे उद्योग के ना होने, गलत नीतियां और भारत के साथ अनावश्यक सैन्य प्रतिस्पर्धा (और 4 युध्दों) के चलते कमजोर होने लगी. पाकिस्तान को चिंतित होने की आवश्यकता थी पर ऐसा नही हुआ क्योंकि विभिन्न कारणों से डॉलर में आ रही अमरीकी सहायता से काम चल रहा था और उसके उपयोग का हिसाब भी नही देना पडता था.

हर देश अपनी कमाई से चलता है. यह कमाई डायरेक्ट और इन-डायरेक्ट करों से तथा निर्यात के लाभ से प्राप्त होती है. डायरेक्ट (इनकम टैक्स) और इन-डायरेक्ट करों की वसुली पाकिस्तान मे काफी कम है (सिर्फ 1 % पाकिस्तानी नागरिक इनकम टैक्स देते है) और निर्यात भी कम है. कमाई कम होने बावजूद अमरीका से लगातार मिलती भरपूर मदत के कारण पाकिस्तान को अपनी अंदरूनी आय बढाने की जरूरत महसूस नही हुई.

इस जानकारी के मद्देनजर अब पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की स्थिती का विश्लेषण किया जाए. पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धी इस साल 5.7 % है जो पिछले 4 वर्षों मे सर्वाधिक है (पिछले साल ये 5.3% थी). सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धी की दर अच्छी अर्थव्यवस्था का संकेत होता है पर तभी, जब अर्थव्यवस्था से जुडे बाकी  मापदंड भी शुभ हों. पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के बाकी मापदंड शुभ नही हैं ये आगे किये गये विश्लेषण से स्षट हो जाएगा.

पाकिस्तान कि घरेलू (आंतरिक) कमाई कम है और उसे बढाने के पिछले वर्ष जो थोडे बहुत प्रयत्न किये गए उनका कोई ज्यादा फायदा नही हुवा. दूसरा कमाई का जरिया अमरिकी सहायता था. पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन करने के कारण वह भी तकरीबन बंद ही है.

अर्थव्यवस्था का जीडीपी के अलावा दूसरा पहलु है भुगतान का संतुलन. यह किसी देश के बाकी दुनिया से व्यापारी लेन देन का सालाना लेखा जोखा होता है जो यह दर्शाता है कि किसी देश के पास विश्व व्यापार की मुद्राओं (जैसे डॉलर)  की बहुतायात है या कमी है. देश जितना निर्यात करता है उतना फॉरेक्स कमाता है और जितना आयात करता है उसके लिए फॉरेक्स खर्चना पडता है. सामान्यत: यह संतुलित होना चाहिये पर वास्तव में ऐसा नही होता.

देश के पास फॉरेन एक्सचेंज ज्यादा है तो उसे फॉरेक्स रिजर्व मे डाल कर और कम है तो उधार ले कर इसे संतुलित करना पडता है. तो क्या पाकिस्तान का बेलेंस आफ पेमेंट ठीक है? उनका आयात उनके निर्यात से कहीं ज्यादा होने से बीओपी बहुत नेगेटिव है. ये देश भारी कर्ज मे डूबा है. इनका विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कुछ वर्षों से “सी – सॉ” का खेल खेल रहा है, जब एशियन डवलमेंट बेंक या चीन से कर्ज मिल जाता है तो इस भंडार में एकाएक वृद्धि हो जाती है फिर ये विदेशी मुद्रा को आयात के लिए खर्च करते हैं तो ये भंडार घट जाता है.

भुगतान संतुलन घाटे में है, विदेशी मुद्रा भंडार का भी हाल ठीक नही है. पाकिस्तान को पहले के वो दिन याद आते होंगे जब “अंकल सॅम” उर्फ अमरिका बेहिसाब सहायता दे देता था और ये ठाट से जी रहे थे. ये अब जरुर कहते होंगे, “कोई लौटा दे मेरे बीते हुवे दिन”.

यदी पाकिस्तान पर दुनिया को यकीन होता कि वहां पैसे लगाना ठीक है तो उसे फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के जरिये विदेशी मुद्रा मिलती पर वो पाकिस्तान है भारत नही. वहां पैसा लगाने के लिए कोई तैयार ही नही है. विदेश मे रह रहे पाकिस्तानीयों से रिमिटेंस भी ज्यादा नही है. मतलब पाकिस्तान को व्यापार (जो भारी घाटे मे है) और रिमिटेंस से विदेशी मुद्रा नही मिल रही है और उसे पाने का कर्ज के अलावा और कोई जरिया उसके पास बचा ही नही है.

उनका करंट अकाऊंट डिफिसिट यानी घाटा अब अविश्वसनीय रूप से बढा हुवा है. यह 2016 – 17 के $ 12 बिलियन से बढ कर अब $ 17 बिलियन हो गया है. विरोधाभास ये है की इस देश के पास सिर्फ दो से तीन सप्ताह के जरूरी आयात लायक ही पैसे है पर वहॉ लझरी कारों का आयात बदस्तूर जारी है.

चीन ने हाल ही मे पाकिस्तान को $ 2 बिलियन का कर्जा दिया है पर वह पर्याप्त नही है. अब पाकिस्तान के पास इस गर्त से निकलने के लिए एकमात्र आशा इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड से सहायता मिलना ही है पर अमरिका ने आय एम एफ को चेतावनी दी है कि वह पाकिस्तान को कोई सहायता ना दे क्योंकि उसे लगता है कि पाकिस्तान यह पैसा चीन का कर्ज चुकाने मे लगाएगा.

पाकिस्तान की बिगडी हुई अर्थव्यवस्था के सुधरने के आसार नही दिखते. नई सरकार के सामने ये सबसे बडी चुनौती है. अब सवाल यह है की पाकिस्तान की बिगडती अर्थव्यवस्था का भारत पर क्या परिणाम हो सकता है?

पाकिस्तान का वजूद भारत का विरोध करने और भारत से घृणा करने पर टिका है. बिगडती अर्थव्यवस्था सुधारने की राह कठीन है जबकि अपने नागरिकों को भारत विरोधी घुट्टी पिला कर बेवकूफ बनाना आसान है. वैसे भी पाकिस्तान के पॉलिटीशियन और सेना कई दशकों से यही करती आ रही है. पैसों की कमी के बावजूद उसकी भारत विरोधी कार्यवाहियां बढने की संभावन है. आतंकवादी गतिविधियां भी बढ सकती हैं. उन्हे इस गंभीर आर्थिक स्थिती मे भी देश की एकता बनाए रखना है और उसके लिए भारत विरोध से अच्छा और कोई तरीका वहां की सरकार के पास नही है.

भारत को और भी सतर्क रहने की जरूरत है क्योकि एक तो इस अनप्रिडिक्टेबल देश के बर्ताव का आंकलन करना असंभव है और दूसरा ये की बिगडती अर्थव्यवस्था सुधारने से भारत का विरोध करना आसान भी है और इससे उनके नागरिको का घ्यान  आर्थिक परेशानियों से हटाया जा सकता है.

(कमोडोर हर्षद दातार। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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