गठबंधन की खिचड़ी राजनीति में हमेशा पकती

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अरे भाई, आप मायावती जी से गठबंधन करना चाहते हो तो कर लेना उनसे भी गठबंधन मगर हम जो यहां बैठे हैं हमसे भी तो गठबंधन कर लो क्योंकि हमसे बिना गठबंधन किये क्या तुम जीत पाओगे बताओ जरा, हाथ जोड़कर मजाकिया अंदाज में ये बात कहने वाले शख्स  बहुजन संघर्ष दल के सर्वेसर्वा फूलसिंह बरैया थे जो भोपाल के गांधी भवन के हाल में लोकक्रांति सम्मेलन के मंच पर जुटे सात छोटे छोटे दलों के बीच ये बात बोल रहे थे। लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव की अगुआई में ये सारे दलों के लोग जुटे थे और दिल्ली में मोदी सरकार और भोपाल में शिवराज सरकार के खिलाफ लामबंद होने की रणनीति बना रहे थे। शरद यादव के साथ सीपीएम, सीपीआई,  गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बहुजन संघर्ष दल, समानता दल के साथ साथ कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित भी मंच पर थे और शरद यादव गरज रहे थे आपको मालुम है कि इन दिनों देश में अघोषित इमरजेंसी लगी है बहुत सी चीजों पर बंदिशें लगी हैं। शाम को शरद यादव कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से मिल भी आये और इसे दो पुराने दोस्तों का मिलन बताया। मगर जानकार जान रहे थे कि इन दो पुराने घुटे हुये नेताओं के बीच बातें क्या हुयी होंगी।

भोपाल के पोलिटेक्निक चौराहे पर गांधी भवन से तकरीबन सटा हुआ है मानस भवन जहां पर दो दिन बाद कांग्रेस के एआईसीसी और पीसीसी डेलीगेटस का सम्मेलन चल रहा है। अंदर बाहर कांग्रेसियों की भीड है। दूर दूर से कांग्रेस के नेता आये हैं। सफेद कुर्ता पायजामा में इस बार तिरंगा पटटा लटका हुआ है। रीवा से आये डेलीगेटस बडे प्रसन्न दिखे। क्या हालात हैं पूछने पर बताते हैं भाईसाहब अभी हमारा माहौल नहीं बना है मगर जनता हमारे साथ दिख रही है बस एक पेंच फंस रहा है गठबंधन का यदि। यदि बीएसपी से गठबंधन हो गया तो हमारा पलडा भारी हो जायेगा और सरकार पक्की मानों। वहीं मिल गये बुंदेलखंड के विधायक जी तीखीं मूंछों वाले ये विधायक भी मान रहे हैं कि नये अध्यक्ष जी के आने से संगठन तो मजबूत हो रहा है बस एक गठबंधन का पेंच सुलझा लें तो जीत पक्की जानिये। बसपा से बात बन गयी तो बुंदेलखंड की 24 में से 20 सीटें हमारी वैसे बिना गठबंधन के भी 18 तो आप मानिये हम जीत ही रहे हैं।

मानस भवन से थोडा उपर जाकर दायीं तरफ जो रोड है वहीं पर है आठ सिविल लाइन यानिकी कमलनाथ का बडे से इलाके में फैला बंगला जिसमें कमरे और लान कई एकड में फैला है। इसी बंगले के अंदर के डाइंग रूम में कमलनाथ बैठे हैं टीवी चैनलों को इंटरव्यू दे रहे हैं। गठबंधन की बात चलने पर समझाते हैं हम बीजेपी विरोधी वोट नहीं बंटने देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। क्योंकि ये बीजेपी ही है जो 25 से 35 फीसदी वोट पाकर जीतती है ओर उसे सरकार चलाने का जनसमर्थन मानती है। हम छोटे छोटे दलों को सम्मानजनक तरीके से समझौते करेंगे और चुनाव लडेंगे मगर क्या इन छोटे छोटे दलों के इकटठा करना इतना आसान है जितना कमलनाथ समझ रहे हैं। और फिर गठबंधन के बाद अपनी सीटों में समझौता करना टेढी खीर कांग्रेस के लिये होगा। राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं ये गठबंधन की बात कहना आसान है मगर उसे जमीन पर उतारना बेहद मुष्किल काम है। कांग्रेस के इन दिनों हर विधानसभा पर चार से पांच ताकतवर टिकट के दावेदार हैं ऐसे में किसी नये आदमी को टिकट देना कितना मुश्किल काम होगा ये गठबंधन होता है तो कमलनाथ और कांग्रेस के लिये बडी परेशानी का कारण भी बनेगा।

यदि हम छोटे दलों की बात करें तो आप ये जानकर हैरान रह जायेगे कि 2013 के विधानसभा चुनाव में एमपी में अडसठ राजनीतिक दलों ने किस्मत आजमायी थी। बीजेपी कांग्रेस के अलावा किसी ओर दल के दहाई अंकों में मत प्रतिशत नहीं था। बीजेपी को चवालीस, कांग्रेस को छत्तीस तो बीएसपी को छह फीसदी वोट मिले थे। सारे निर्दलीय उम्मीदवारों का वोट पांच फीसदी था। सबसे कम वोट प्रतिशत जय मानवता पार्टी को मिला था शून्य दशमलव शून्य शून्य शून्य तीन। दो तीन बडे दलों के अलावा इतने सारे दलों का चुनाव लडना क्या दिखाता है। ये सारे दल जीतने की उम्मीद से ही चुनाव लडते हैं और चुनाव के परिणाम आने तक अपनी जीत को लेकर मंसूबे बांधते रहते हैं। दावे करते रहते हैं।

उधर गठबंधन और छोटे दलों की उठापटक से दूर सीएम शिवराज सिंह अपनी जन आशीर्वाद यात्रा के रथ पर खडे होकर सामने खडी जनता से उमरिया में कहते हैं आपने देखा होगा कि बाढ के डर से एक पेड पर ही सांप छछूंदर सब चढ जाते हैं ऐसे ही इस बार ये सारे दल बीजेपी के खिलाफ जुड रहे हैं मगर भैया ये जनता यदि हमारे साथ है तो हमें किसी का डर नहीं है। समझना कठिन है डर किसको लग रहा है।

(ब्रजेश राजपूत, वरिष्ठ पत्रकार। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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