2019 में एनडीए को मिलेगी सबसे ज्यादा सीट: सर्वे

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17वीं लोकसभा के चुनाव कब होंगे, अनुमानों के बीच अगले चुनाव में नरेन्द्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनकर भाजपा को 2014 की तरह 543 में से ऐतिहासिक 282 सीटें जिता पायेंगे या नहीं उसका राजनीतिक समीकरण राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा राजनीतिक शतरंज की बाजी बिछाकर आकलन किये जा रहे हैं। 2014 तक का भारत और 2014 से लेकर 2018 तक का मोदी के भारत के बीच जमीन आसमान का फर्क दिखने को मिल रहा है। उस वक्त उन्होने दिये चुनावी वादे चार साल के बाद उनके सामने विविध माध्यमो के द्वारा मौन पसारे उनके सामने आ गये है ओर मानो कि वे पूछ रहे हैं कि रोजगारी, राम मंदिर, कश्मीर के लिये धारा 370, समान नागरिक संघिता, आतंकवाद, नक्सलवाद, कश्मीर में शांति, महिला सुरक्षा के लिए दिये गये वादे में से कितने पूरे हुए। मानो उसका जवाब तलाश कर रहे है। हांलाकि उसके जवाब प्रधानमंत्री मोदी दे उससे पहले ही चार साल में भाजपा और उसके नेतृत्व के तहत गठित केन्द्र सरकार में वादे के मुताबिक नहीं किये यह कार्य ओर जो नहीं करना चाहते थे ऐसे कार्य जैसे की नोटबंदी, जीएसटी, मंदी, शिवसेना जैसे पक्षो की नाराजगी, तामिलनाडु में नई प्रादेशिक नेतागीरी, कश्मीर में पीडीपी के साथ मनमुटाव, बिहार में बिहारी बाबू नितिशकुमार का विशेष दरर्जे को लेकर रुक रुक कर बोलना इन सभी मुद्दों को देखते हुए और सबसे बडा मुद्दा कि जो पिछली बार एक दूसरे के सामने भीड़ वह इस वक्त एक होकर चुनाव जंग के मैदान में उतरने के लिये अपने राजनीतिक हथियार सजा रहे है। एसे में जो राष्टव्यापी राजनितक चित्र कुछ कुछ बन उभर कर आ रहा है वह दिखा रहा है की यदि इस वक्त चुनाव होते है तो मोदी को 543 में से 282 तो नहीं लेकिन 195 से 200 तक की सीटें मिल सकती है। दूसरी ओर कांग्रेस को भी ज्यादा मुस्कराने की जरुरत नहीं है क्योंकि अब भी सत्ता से दूर होने का चित्र बन रहा है। प्रधानमंत्री मोदी को फिर से दिल्ही की गद्दी देने के लिए अपने स्वभाव से विरूद्ध जाकर राजनीतिक गठजोड़ या उठांग पटांग की नीति अपनाना पड़े। चार साल तक उनका शासन उनका स्वभाव राजनीतिक दुश्मनी आदि को देखते हुए उनके नेतृत्व में बनने वाली सरकार में शामिल होने के लिये परिणाम के बाद कितने दल तैयार होगे यह भी एक सवाल है।
2014 में प्रधानमंत्री मोदी के वचनो में आम मतदाताओं को 15 लाख की अपेक्षा तो थी लेकीन यह सरकार कुछ अच्छा करेगी, कम से कम महगांई तो कम करेगी, पट्रोल-डीजल के दाम कम होगे ओर वास्तव में उनके लिये अच्छे दिन लायेगे। लेकिन सरकार बनने के बाद जैसे जैसे मोदी सरकार ने काम शुरू किया वैसे वैसे एक के बाद एक उनकी विफलताए बाहर आती गई। पाकिस्तान के साथ लव लेटर लिखना बंद होना चाहिए ऐसा कहने वाले मोदी ने साडी और शॉल का व्यवहार किया तथा नवाज शरीफ को मिलने काबूल ले अचानक लाहौर जाना और उसके बाद पठानकोट एरबवेज पर आतंकी हमला होना ओर आज तक कश्मीर में आतंकी हमले हो रहे है। हर रोज भारत के सैनिक शहीद हो रहे है। पीडीपी सरकार के साथ मनमुटाव होने के बाद गवर्नर राज में कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो जायेगा ऐसी एक हवा फैलाई गई किन्तु वह हवा भी बिखर गई ओर कश्मीर की स्थिति वैसे ही हे जैसे पीडीपी सरकार की दौरान थी।
2014 के बाद जिन राज्यो में विधानसभा चुनाव हुए उसमें भाजपा ने अच्छी खासी सफळता और बढत प्राप्त की है आज की तारीख में करीब 20 से 21 राज्यो में भाजपा ओर भाजपा सहयोगी दलो की सरकार है। पूर्वोत्तर के छ सात राज्यो में भाजपा ने डंके की चोट पर सत्ता हासिल की लेकिन प्रधानमंत्री के होम स्टेट गुजरात में भाजपा ने मानो हांफते हांफते 99 सीटे हांसिल की ओर इसके साथ केसरी रंग की इज्जत बच गई। गुजरात की धरती पर ही कांग्रेस ओर राहुल गांधी को नैतिक एवं राजनीतिक मनोबल मिला। मंदिर मुलाकात गुजरात से शुरू हुई ओर कर्णाटक में भी उसे दोहराया गया।
कांग्रेस ने सॉफ्ट हिन्दुत्व की जो धारा अपनाई उसे राजनीतिक लाभ मिले तो दूसरी ओर हिन्दू पार्टी कहने वाली भाजपा सरकार ने तीन तलाक, हलाला और मुस्लिम समुदाय की अन्य मुद्दो को लेकर कदम उठाये उससे यह छबि बन गई है की मुस्लिम तृष्टिकरण का आरोप कांग्रेस पे लगाने वाली भाजपा के ऊपर ही अब मुस्लिम तुष्टीकरण का सिक्का लग रहा है। अपनी इस छबि को दूर करने के लिये राम मंदिर का मुद्दा उछाला जाता है। राम मंदिर को लेकर ही वीएचपी में से तोगड़िया को निकाल दिया गया और आनेवाले चुनाव में कांग्रेस ओर उसके सहयोगी दलो के साथ भाजपा को तोगडिया जैसे अनेक नाराज नेताओं का भी सामना करना पडेगा।

अविश्वास प्रस्ताव में 325 के खिलाफ 126, मोदी के लिए राहत का संकेत?

लोकसभा मे अविश्वास प्रस्ताव की गरमा गरम चर्चा और वोटिंग के बाद प्रस्ताव के खिलाफ 325 वोट पड़े और प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ 126 वोट आये। यूं कहा जाय की एनडीए सरकार के पक्ष में 325 और प्रतिपक्ष के पाले में 126 वोट आये। वोटिंग के वक्त सदन में कुल 451 सांसद मौजूद थे। रणनीति के अनुसार बीजेडी के सांसद वॉक आउट कर गए थे। यह इस बात का इशारा है की लोकसभा चुनाव में ओडिशा में भाजपा और नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन होने की संभावना है। भाजपा से नाराज शिवसेना ने वोटिंग में हिस्सा न लेते हुए सदन के बाहर ही रहे। न तो मोदी सरकार का समर्थन किया न तो वोटिंग में हिस्सा लिया। महाराष्ट्र में भाजपा अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी इससे भाजपा को कई सीटों का नुकसान हो सकता है।

तामिलनाडु में रजनी भाजपा के साथ कमल और डीएमके कांग्रेस के साथ
दक्षिण भारत में तमिलनाडु में स्थानीय और रीजनल पार्टियो की बोलबाला है। २०१४ में अम्मा के इस राज्य में भाजपा को सिर्फ एक ही सीट मिली थी। इस बार अम्मा की पार्टी, करुणानिधि की डीएमके पार्टी के अलावा फिल्म स्टार रानिकांत ने भी राजनीति में कदम रखते हुए अपनी नई पार्टी गठित की है। उनके चुनाव चिन्ह में योग की ध्यान मुद्रा और पृष्ठभूमि में कमल का फूल अंकित है। इतना ही नहीं रजनी सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री की भूरी भूरी प्रसंशा कर रहे हैं। उसे देखते हुए वे मोदी के साथ जायेंगे। हो सकता है की रजनी भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन भी करें। रजनी अपनी लोक चाहना के बल पर उम्मीद से ज्यादा सीटें ले सकते हैं। इसी तरह एक अन्य फिल्म स्टार कमल हसन ने भी अपनी मक्कल मायम निधि पार्टी के साथ चुनाव का बिगुल बजा दिया है। उन्होंने मोदी सरकार की आलोचना का रुख अपनाते हुए ऐसा कह सकते हैं की वे कांग्रेस के साथ दिखेंगे। अम्मा जयललिता के बाद उनकी पार्टी बिखर गई है। ऐसे में रजनी भाजपा के साथ, कमल और करुणानिधि कांग्रेस के साथ दोस्ती करेंगे।
7 राज्यों में बन सकता है कांग्रेस का संयुक्त मोर्चा
लोकसभा के आम चुनाव में भाजपा और मोदी का सब साथ मिलकर सामना करने के लिए कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के बीच गठबंधन या संयुक्त मोर्चा बनाने के प्रयास तेज है। कांग्रेस ने राहुल गाँधी को मोर्चा के नेता और प्रधानमंत्री पद का चहेरा घोषित किया। लेकिन उसे सिर्फ कर्णाटक में देव गौडा ने समर्थन दिया। मायावती या ममता इसे समर्थन न देकर विरोध करे तो भी इस पर नर्म रुख अपनाकर गठबंधन को आगे बढाने की रणनीति भी तैयार की है। जो रपट आ रही है वह बता रही है की कम से कम ७ राज्यों में तो प्रतिपक्ष का गठबंधन हो सकता है। इन 7 राज्यों में यूपी,बिहार, कर्णाटक, झारखण्ड, तमिलनाडु और जम्मू कश्मीर आदि है।
भाजपा को कहां कैसी मुसीबतों का सामना करना पड सकता है
लोकसभा के आम चुनाव देश के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। तब भाजपा ओर कांग्रेस द्वारा अपनी अपनी जीत के राजनीतिक समीकरणों का आकलन ओर अपनी अपनी शतरंज की बाजियां बिछाई जा रही है। ऐसे समय में सत्तारूढ़ भाजपा को चुनाव में क्या ओर कैसे सामना करना पडेगा या सीटें कम होगी ऐसे राज्यों में जम्मू काश्मीर पंजाब दिल्ही, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्णाटक बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, युपी, तामिलनाडु ओर आंध्र प्रदेश कहे जा सकते है। उसकी वजह यह है की महाराष्ट्र में शिवसेना, बिहार में लालू ओर नीतिश भाजपा के लिये रोडे डाल सकते हैं। पंजाब कर्णाटक में कांग्रेस की सरकार है, बंगाल में टीएमसी मजबूत है ओर आंध्र में चंद्राबाबू काफी नाराज चल रहे हैं। तामिलनाडु में भाजपा का कोई नाम नहीं है, केरल में वामपंथी उनको शायद प्रवेश भी करने नहीं दे। कश्मीर में पीडीपी के साथ किट्टा है।
अकेले चुनाव नहीं लड़ सकती भाजपा या कांग्रेस करेंगी सीटों का बंटवारे
कर्णाटक के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस और जेडीएस के साथ कई दल एक मंच पर दिखाई दिए थे। सपा, बसपा, टीडीपी, तृणमूल कांग्रेस के साथ आप के केजरीवाल भी मौजूद थे। और वहां उनकी एक राय बनी की भाजपा को हटाने के लिए एक होना जरुरी है। इसे देखते हुए इन दलों में गठबंधन या मोर्चा बनने के आसार दिखाई दे रहे हैं लेकिन यूपी में मायावती सीटो के बंटवारे को लेकर कुछ अलग राग आलाप रही है। हो सकता है की यूपी में माया के साथ कांग्रेस की न भी बने। हालांकि जब चुनाव घोषित हो जायेंगे तब इन सभी दलों का रवैया साफ़ होगा। दूसरी ओर भाजपा भी सभी 543 सीटों की बजाय पिछली बार की तरह कुछ सीटे अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ देगी। पंजाब में सहयोगी अकाली दल को सीटे देगी तो यूपी में अपना दल और पासवान के लिए भी अपना प्रत्याशी उनके खिलाफ नहीं खड़ा करेगी। कुल मिलाकर छबि ये उभर रही है की २०१४ में जो भाजपा के साथ खुद एक दूसरे की खिलाफ लड़ें वे इस बार कांग्रेस के साथ मिल कर आपसे में न लड़ते हुए भाजपा के सामने एक होकर चुनावी जंग के मैदान में उतरेंगे। एक वजह यह भी है की पिछली बार एक दूसरे के सामने भिड़ने वाले इन दलों को अपने अस्तित्व को टिकाये रखने का डर लग रहा है। मोदी सरकार की कार्यशैली के साथ उनके द्वारा होते लगातार हमले को देखकर सपा, बसपा आदि को लगा की यदि एकजुट नहीं हुए तो मोदी उन्हें निगल जायेगा। इसी डर के तहत उन्होंने गोरखपुर और फूलपुर समेत उप चुनाव में प्रयोग कर साझा प्रत्याशी खड़ा किया और भाजपा को हारना पड़ा। उससे उनका जो हौंसला बढ़ा वह आम चुनाव तक पहुंचेगा विपक्ष एक हो लेकिन फिर भी यह भी देखना होगा की मोदी उसमे कितनी सेंध लगा सकते हैं।
मोदी सरकार की विभिन्न सरकारी योजनाओं से समर्थन प्राप्त करना मुश्किल है
भाजपा द्वारा फिर से जीतने के लिए मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को भाजपा को वोट दे ऐसे प्रयास किये जा रहे। स्वास्थ्य कार्ड और भारत में 100 मिलियन परिवारों और उसके 50 मिलियन सदस्यों का आजीवन लाभ। मुंद्रा योजना के लाभ 12 करोड़ लोगों को दिए गए हैं। इसके अलावा, दलितों और आदिवासियों के पास भाजपा के लिए मतदान करने की रणनीति भी है।
इसी लिए मोदी सरकार ने पिछले कई महीनो से करीब एक हजार से ज्यादा सरकारी अफसरों को 486 जिलों में २१ हजार से ज्यादा गांवों में भेजकर सरकार की अलग अलग योजनायें का लाभ किसे मिला, किसे अभी तक नहीं मिला उसकी जानकारी जुटा रही है। सरकार ने अपनी करीब 7 योजना पर भरोसा बनाया है की जिसे इसका लाभ मिला वह आधी रत को भी भाजपा का ही गुणगान गाएगा। इन सात योजनाओं में उज्जवला, सौभाग्य, जनधन, जीवन ज्योति बीमा, इन्द्रधनुष , ग्राम स्वराज अभियान,आवास योजना आदि का समावेश है। ये वे जिले हैं जहां दलितों की और आदिवासियों की ज्यादा आबादी है। ये वही वर्ग के है जो वोट देने जाते हैं। सरकार योजनाओ के तहत उन तक पहुँच कर और उन्हें चुनाव के वक्त वोटिंग तक पहुँचाने की कोशिश करेगी।
राष्ट्रीय स्तर पर कोई एक मुद्दा नहीं, कइ अलग अलग मुद्दों को उछाल सकती है भाजपा
लोकसभा के आम चुनावो में भाजपा द्वारा सब का साथ, सब का विकास यह मुद्दा मुख्य हो सकता है लेकिन भाजपा की अंदरुनी रणनीति ऐसी बताई जा रही है की वह राष्ट्रीय स्तर पर मुख्यतह हिन्दुत्व का मुद्दा उछालेगी। राजस्थान के अलवर में जो घटना बनी है वह ध्रुवीकरण की ओर ले जायेगी। रणनीति के तहत अलग अलग राज्यों में नेताओं द्वारा अलग अलग मुद्दो को उछाला जा सकता है। ताकि यह पता न चले की चुनाव आखिर किन मुद्दों को लेकर हो रहे हैं। कांग्रेस मुस्लिमो की पार्टी है भ्रष्टाचारी है उद्योगपति के साथ उनके भी रिश्ते हैं। 70 साल तक देश को लूटा हे यह सब मुद्दे उसमें आ सकते हैं। हिडन एजेन्डा में राम मंदिर, हिन्दुत्व, कांग्रेस की बदनामी ओर कांग्रेस में से मणिशंकर अय्यर जेसे नेता उनके खिलाफ विशेषकर मोदी के खिलाफ एक लब्ज भी निकाले तो उसी बात को लेकर चुनाव में कहीं कहीं मुख्य मुद्दा भी हो सकता है। पाकिस्तान का मुद्दा भी चुनाव में हावी हो सकता है।
किस राज्य में कैसी है राजनीतिक वर्तमान स्थिति।।
उत्तरप्रदेश: देश के सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश की बात करे तो पिछले आम चुनाव में भाजपा को 80 में से 71 सीटें मिली थीं। जो अपने आप में एक इतिहास है। सपा को पांच ओर कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। जब की अपना दल नामक राजनीतिक पार्टी को दो सीटें मिली थीं। किन्तु बसपा के मायावती को एक भी सीट मिली नहीं थी। कुछ समय पहले गोरखपुर ओर फूलपुर उपचुनाव हारने के बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व को लेकर आशंका जताई जा रही है। 2009 से लेकर 2014 में 71 सीटें जीतने के बाद अब अगले चुनाव में भाजपा को यूपी में सिर्फ 40 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ेगा। क्योंकि यूपी में सपा बसपा, कांग्रेस एकजुट हो रहे हैं। वैसे तो यूपी में भाजपा का कोई सहयोगी दल नाराज नहीं है।
उत्तराखंड: उत्तराखंड की सभी पांच सीटें भाजपा फिर से जीत सकती है।
पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल में जो अब बांग्ला के नाम से जाना जायेगा वहां 42 सीटों में से भाजपा को पिछली बार सिर्फ दो सीटें ही मिली थीं जो की 2009 से एक सीट ज्यादा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ओर अमित शाह ने बांग्ला में अपना प्रभाव बढ़ाने का भरसक प्रयास किया है। बांगला में ममता बेनर्जी के किले को ढहाने के लिये भाजपा लगातार काम कर रही है। टीएमसी को 42 में से 34 सीटें मीलि है। इस बार ममता बेनर्जी का आक्रमक स्वरूप ओर सहयोगी दलों के साथ मित्रता इन सब को देखते हुए शायद फिर से 34 सीटें मिल सकती है लेकिन जिस तरह से भाजपा तैयारियां कर रहा है उसे देखते हुए इस बार 34 में से 30 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़ सकता है। भाजपा को बांगला में पांच से सात सीटे मिल सकती हैं।
बिहार: बिहार की राजनीतिक पर स्थिति पर नजर डाले तो मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को लालू प्रसाद से अलग कर भाजपा ने सरकार में जबरन भागीदारी की है लेकिन बिहार को विशेष राज्य के दरजे को लेकर बिहारी बाबू नीतिशकुमार धीमी धीमी अवाज में बोल रहे है। वे खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं। सीटों के बंटबारे को लेकर वे भाजपा का नाक दबाने की कोशिश अवश्य कर रहे है। इसे देखते हुए शायद चुनाव से पहले वे अपना अलग चौका भी बना सकते हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने 40 में से 22 सीटें जीती थी। जो 2009 से दस सींटे ज्यादा थी। इस बार भाजपा नीतिश साथ साथ रहते हैं तो 20 से 25 सीटे मिल सकती है। यदि नीतिश अलग चलते है तो भाजपा को सिर्फ दस सीटें ही मिल सकती हैं।
गुजरात: गुजरात में पिछले चुनाव में भाजपा ने सभी 26 सीटें जीतकर एक नया इतिहास रचा था। क्योंकि गुजरात का कोई नेता फिर एकबार प्रधानमंत्री बनने जा रहा है ऐसी अपील काम कर गई थी लेकिन विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा को 21 सीटें कम मिली थीं ओर सिर्फ 99 सीटों से ही संतुष्ट होना पडा। गुजरात में कांग्रेस विधानसभा में 77 सीटों के साथ मजबूत है। 77 सीटों में एनसीपी और छोटूभाई वसावा की भी दो सीटें शामिल हैं। विधानसभा में भाजपा को कम सीटें मिली हैं उसे देखते हुए मोदी के होम स्टेट में इस बार 26 में से 20 शीटें मिलने के आसार नजर आ रहे हैं।
पंजाब: पंजाब में भाजपा ओर शिरोमणी अकाली दल विधानसभा में हारने के बाद कांग्रेस के कप्तान अमरिंदर सिंह एक मजबूत मुख्यमंत्री बने है। उसे देखते हुए लोकसभा चुनाव में वे पंजाब में भाजपा को शायद एक भी सीट न दें। पिछली बार कुल 13 सीटों में से भाजपा को 2 ही सीटें मिली थीं। कांग्रेस को तीन आप को चार अकाली दल को चार इस तरह सीटों का बंटबारा हो गया था। इस बार कांग्रेस औ केजरीवाल के आक्रमक तेवर को देखते हुए हालांकि हालात भाजपा के विरूद्ध होने के बावजूद किसानों के लिये जो समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की गई है। उसे देखते हुए भाजपा ओर अकालीदल को 6 से 8 सीटें मिल सकती हैं।
जम्मू कश्मीर: जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ संबंध बिगड़ चुके हैं। पिछली बार भाजपा को 6 में से तीन सीटें मिली थीं। इस बार गवर्नर राज लागू है लेकिन जम्मू और अन्य हिन्दू आबादी वाले क्षेत्रों में हिन्दू मतदाता नाराज होने की बात चल रही है। इसे देखते हुए 6 में से दो सीटें मिल सकती है।
ओडीशा: ओडीशा में बीजेडी के सामने भाजपा को झुकना पडा था। पिछली बार 21 में से सिर्फ 1 ही सीट मिली थीं। इस बार सीएम नवीन पटनायक को अपने साथ रखने में भाजपा सफल होती दिख रही है क्योंकी पटनायक ने मोदी की वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है तो संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान रणनीति के अनुसार बीजेडी के सांसद सभा त्याग कर चले गये थे ताकि भाजपा के खिलाफ या प्रस्ताव के समर्थन में मतदान करना न पडे। यदि बीजेडी के साथ मेल बैठता हे तो भाजपा को 21 में से पांच सीटे मिल सकती है।
हिमाचल: हिमाचल में भाजपा की सरकार है इसे देखते हुए सभी चार सीटे भाजपा जीत सकती है।
झारखंड: झारखंड में भाजपा की सरकार है फिर भी कानून व्यवस्था, कोल माफिया आदि को देखते हुए 14 में फिर से यदि 12 सीटें पिछली बार की तरह भाजपा को मिले तो गनीमत समझो। झारखंड मुक्ति मोर्चा दो या तीन सीटें जीत सकता है।
कर्णाटक: कर्णाटक में येदिरुरप्पा एक दिन के मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा चुनाव में कुल 28 में से फिर से 17 सीटें जीतने का जुगाड़ कर रहे है। जेडीएस ओर कांग्रेस गठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी द्वारा सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस के खिलाफ अपना रोना इसे देखते हुए भाजपा को ऐसा लग रहा है की शायद ज्यादा सीटे मिलें। लेकिन जेडीएस भाजपा के खिलाफ होने की वजह से चाहे कांग्रेस परेशान कर रही हो फिर भी चुनावी गठबंधन होगा और भाजपा को 28 में से सिर्फ दस सीटे मिल सकती हैं।
मध्यप्रदेश: मध्यप्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव करने की तैयारियां हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को फिर से सत्ता मिले या न मिले लेकिन भाजपा को आम चुनाव में 29 में से 27 के बजाय 15 सीटें मिल सकती है क्योंकि दलित मतों के लिये मायावती और कांग्रेस भाजपा के खिलाफ मोर्चा बंदी कर रही है। उनकी मोर्चाबंदी विधानसभा के 70 सीटों पर प्रभाव कर सकती है ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है हांलाकि मध्यप्रदेश में मोदी नहीं शिवराज प्रभावशाली बनेंगे। फिर भी सत्ता विरोधी लहर और किसान आंदोलन में मारे गये किसानों की घटना इन सब को देखते हुए कम सीटों के साथ भाजपा के हाथ से एमपी निकल सकता है।
असम: असम में इस बार भाजपा की सरकार है। पीछली बार 14 में सात सीटें मिली थीं इस बार 12 सीटें मिल सकती हैं।
आंध्रप्रदेश: आंध्रप्रदेश में पीछली बार भाजपा ओर टीडीपी के बीच गठबंधन था। 25 में से 17 सीटें मिली थीं। मोदी सरकार में टीडीपी के सांसद को जगह भी मिली थीं लेकिन आंध्र को विशेष राज्य के दरजे को लेकर अब चंद्राबाबू औ भाजपा आमने सामने आ गई है। कांग्रेस चंद्राबाबू ओर अन्य दल एक होने जा रहे है उसे देखते हुए आंध्र में भाजपा का सफाया हो सकता है क्योंकि आंध्र के लोग हमारे साथ विश्वासघात हुआ इस बात को लेकर नाराज है फिर भी यदि भाजपा जोर लगाती है तो चार से पांच सीटें मिल सकती हैं।
छत्तीसगढ: छत्तीसगढ में विधानसभा के चुनाव भी साथ होने जा रहे है। वहां के मुख्यमंत्री रमण सिंह को भी एन्टी इन्कमबेंसी का सामना करना पडेगा। उसे देखते हुए भाजपा की सरकार फिर भी 11 में से सात या आठ सीटें मिल सकती है।
केन्द्र शासित प्रदेशः अंड़मान- 1, चंदीगढ – 1, दादरा नगर हवेली – 1, लक्षद्वीप -1, दीव – दमन- 1, पुडुचेरी – 1, मिलकर 6 सीटें भाजपा को मिल सकती है।
दिल्ही दिल्ही में पीछली बार भाजपा को सभी सात सीटें मिली थी। लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ जिस तरह से मोदी सरकार बर्ताब कर रही है उससे फर्क पड सकता है फिर भी दिल्ली के मतदाताओ का ऐसा रवैया रहा है की विधानसभा में केजरीवाल ओर लोकसभा में मोदी को समर्थन दे तो भाजपा को चार सीटें ओर आप पार्टी को तीन सीटें मिल सकती हैं।
गोवाः गोवा में भाजपा की सरकार है हांलाकि दूसरी पार्टी के साथ सरकार बनाई है फिर भी दो सीटें मिल सकती है।
हरियाणाः हरियाणा में पिछली बार दस सीटो में से भाजपा को सात सीटें मिली थीं। मुख्यमंत्री खट्टर के खिलाफ कुछ सांसद नाराज नजर आ रहे है। राम रहिम का मामला, कानून व्यवस्था आदि को देखते हुए यदि मतदाता नाराज चंलेगे तो दस में सात से आठ सीटें मिल सकती हैं।
तेलंगनाः तेलंगना में वाईएसआर भाजपा के साथ मिले तो 17 में से भाजपा को सिर्फ एक या दो सीटें ही मिल सकती है।
तामिलनाडुः तामिलनाडु में रीजनल दलों की बोलबाला है। पीछली बार 39 सीटों में से भाजपा को सिर्फ एक ही सीट मिली थी। एआईएडीएमके दल में जयललिता के बाद पार्टी बिखरी बिखरी नजर आ रही है। दूसरी ओर मोदी के इशारे पर फिल्म स्टार रजनीकांत ने बाकायदा राजनीति में प्रवेश कर अपनी नई पार्टी बनाई है उसके साथ ही अन्य फिल्म स्टार कमल हासन ने भी अपने राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव में उतरने की घोषणा की है। तामिलनाडु में रजनीकांत को 39 में से 15 ओर कमल हासन को पांच सीटे मिल सकती हैं। दोनों अपनी लोक चाहना के बलबूते पर जीत सकते हैं। हो सकता है की चुनाव के बाद रजनीकांत मोदी को केन्द्र में समर्थन दे ओर कमल हासन कांग्रेस के साथ नजर आ सकते है। डीएमके ओर कांग्रेस के बीच पुराने संबंध रहे है वह इस बार भी दिखाई दे सकती है।
राजस्थानः राजस्थान में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव होने के आसार है। जाट समुदाय को आरक्षण को अलवर मोब लिन्चिंग जैसे मामले इन सबको देखते हुए ओऱ राजस्थान में सत्ता दल को फिर से सत्ता न मिलने की परंपरा को देखते हुए भाजपा विधानसभा में हार सकती है ओर लोकसभा में 25 में से पिछली बार की तरह 25 नहीं लेकर 18 से 20 सीटें जीत सकती है।
महाराष्ट्रः महाराष्ट्र में 48 सीटो में से भाजपा ने 23 सीटें जीती थी। उस वक्त शिवसेना के साथ गठबंधन था। शिवसेना को पिछली बार 18 सीटें मिली। 2018 आते आते शिवसेना और भाजपा एक दूसरे को मारने के लिये उतावले दिख रहे हैं तो यदि शिवसेना अकेला चलता है तो भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। शिवसेना की सीटें बढेगी तो भाजपा की कम होगी।

किस राज्य में कौन सा मुद्दा चुनाव में हो सकता है
लोकसभा के चुनाव सामान्यत: राज्यों के मुद्दों पर लड़ा नहीं जाता। राज्यों के मुद्दे उसमें गौण हो जाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर जो मुद्दा चल रहा है वही आम मतदाता पर अपना प्रभाव दिखाता है। फिर भी कश्मीर में आतंकवाद और धारा 370 का मुद्दा चर्चा में आ सकता है।
दिल्ही में आप पार्टी द्वारा उनकी सरकार को जो परेशान किया जा रहा है वह मुद्दा बन सकता है।
पंजाब में केन्द्र सरकार द्वारा अन्याय, किसानों की समस्याएं ओर सुरक्षा का मुद्दा चुनाव में आ सकता है।
राजस्थान में भाजपा के खिलाफ कोई बडा मुद्दा नहीं है। मुख्यमंत्री वसुंधरा सरकार की कार्यशैली को लेकर मुद्दा हो सकता है।
गुजरात में फिर एक बार मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का सकारात्मक मुद्दा चल सकता है।
आंध्रप्रदेश में हमारे साथ अन्याय ओर विश्वासघात हुआ है ऐसा मुद्दा चुनाव में अपनी गूंज सुनाई देगा।
केरल में भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्या का मुद्दा भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखा सकता है।
तामिलनाडु में भाजपा या राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों की बजाय स्थानीय और प्रादेशिक दल एक दूसरे के सामने होंगे।
कर्णाटक में भाजपा ने कीस तरह राजभवन का दुरुपयोग किया सता पाने के लिये वह मुद्दा बन सकता है।
बंगाल में ममता बनर्जी उसके राज्य के साथ हुआ अन्याय इस बात को लेकर चुनाव में जा सकती है।
महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के लिये एक मुद्दा बन सकता है। मराठा आरक्षण को लेकर हाल ही में आंदोलन हुआ था लेकिन भाजपा सरकार ने चर्चा के लिये बुलाने की वजह से आंदोलन वैसे तो सिमट गया है लेकिन शिवसेना मराठी मानुस के मुद्दे को फिर एक बार चुनाव में ला सकता है। हांलाकि मराठा समाज को आरक्षण देने के लिये फडनवीस सरकार जोर शोर से तैयारी कर रही है ओर शायद इसी बात को लेकर वह शिवसेना से आगे निकल सकती है।
बिहार में विशेष राज्य के दर्जे को लेकर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार बार बार यही बात दोहरा रहे हे लेकिन मोदी सरकार उसकी अनदेखी कर रही है। बिहार में लालू को जेल यह शायद बडा मुद्दा बन सकता है क्योंकि बिहार में ऐसा देखा गया है कि जब जब लालू को जेल हुई है उसकी पार्टी को चुनावी फायदा मिला है। मोदी सरकार ने जानबूझ कर लालू को चुनावी मैदान से दूर कर दिया है यह मुद्दा भी उनकी पार्टी उठा सकती है।
यूपी में दो उपचुनाव में भाजपा की करारी हार को लेकर योगी सरकार की नीति रीति के खिलाफ भाजपा में ही आशंका व्यक्त की गई थी। रोजगार के मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में देश के नामी उद्योगपतियों के साथ मंच साझा किया और 60 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट का एलान कर दो लाख लोंगों को रोजगारी देने का वादा कीया है। इसे देखते हुए और आने वाले समय में यूपी में सब ठीक है इस तरह का माहौल बन सकता है जबकि सपा, बसपा, कांग्रेस एक जुट होकर सामना करने को तैयार है। 80 सीटों में से सपा, बसपा को 30 30 सीटें देने की बात चल रही है।
पूर्वोत्तर के राज्यो में मोदी ने पहले से ही ध्यान दिया है। ओर वहां रेल सेवा, अस्पताल इन सब प्राथमिक सुख सुविधाओ का प्रारंभ किया गया है, उसे देखते हुए आम चुनाव में वहां कोई विशेष मुद्दा उभर कर आने की संभावना कम है।
ओडीशा में बीजेडी भाजपा के साथ होने की संभावना से वहा नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक मुद्दा चलेगा।

पूर्वोत्तर में मणिपुर की दो, मेघायल एक, मिझोरम में एक, त्रिपुरा दो ओर अरुणांचल की दो सीटें मिलकर इन राज्यों में भाजपा सभी सीटें जीत सकती है लेकिन कुछ राज्यो में अन्य दलों के साथ गठबंधन देखते हुए यदि वे दल अपना प्रत्याशी खडा करे तो भाजपा को नुकसान हो सकता है।
एनसीपी शिवसेना, बीजेडी, डीएमके, एआईएडीएमके, साम्यवादी, आप, लोजपा, वायएसआर, अकाली दल, आरजेडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, पीडीपी, टीएमसी आदि अगले चुनावों में करीब 100 सीटें जीत सकता है। यदि संयुक्त मोर्चा बने तो उसे 193 से लेकर 200 सीटें मिल सकती है। इस तरह यह राजनीतिक आकलन और सभी मुद्दों को देखते हुए भाजपा 175 से लेकर 210 सीटें मिल सकती हैं। कांग्रेस को पिछली बार 44 सीटें मिलीं थीं जो इस बार बढ़ कर 75 से 100 सीटें हो सकती है। हालांकि सपा, बसपा इत्यादि दलों के साथ सीटों के बंटबारे को लेकर कितना अच्छा माहौल बनता है उस पर कांग्रेस की सीटों का आधार है।

(लोकसभा के आगामी आम चुनाव का सर्वेक्षण गुजराती न्यूज सर्विस (जी.एन.एस) द्रारा जुलाई में देश के 18 राज्यों में लगु एवं मध्यम अखबारों के 428 जिल्लो में कार्यरत 1300 से ज्यादा पत्रकारों द्रारा किया गया फिल्ड सर्वे और इसके साथ ही 800 से भी ज्यादा अखबारों के वरिष्ठ सम्पादको द्रारा अपने चुनाव विश्लेषण के साथ देश के राजनीतिक पंडितो के अपने अनुभव आकलन के आधार पर सभी राजनितिक पहलुओं को देखते हुए यह चुनाव सर्वे रिपोर्ट तैयार की गई है)

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