ये है सोशल मीडिया का सही उपयोग!

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ठेठ बुंदेलखंड….छोटा सा गांवछपरा….जिला छतरपुर। छरहरा बदन, नीचे गमझा, उपर कमीज, पैरों में नायलोन की चप्पल। नाम कल्लू सिंह। नए नवेले शौचालय की दीवार। दीवार पर गुलाबी रंग के अल्फाज़ “ मोदी जी बडे महान, जिन्होंने चलाया ए अभियान”। तंज कहें या अहसान…! हैरानी इस बात की नहीं कि कर्ज लेकर शौचालय बनाया…..हैरानी इस बात की नहीं कि शौचालयों भी घूस से अछूते क्यों नहीं…..हैरानी इस बात की भी नहीं कि कमिशन नहीं देने पर भुगतान नहीं। यह तो तंत्र है साहब। हैरानी है तो जाग उठे हिंदुस्तान की। छपरा गांव का कल्लू शिकायत के लिए किसी दफ्तर नहीं गया। उसने ठान लिया- ‘शौचालय के बदले घूस हरगिज़ नहीं।’ अर्बन इलाकों में सोशल मीडिया को हथियार बनाए जाने की कई कहानियों को हर दिन मेन स्ट्रीम मीडिया में पढी जा रही है।

हैरानी की बात है- पिछडे बुंदेलखंड के ठेठ गांव में सोशल मीडिया की इस ताकत का दस्तक दे जाना। शौचालय की सफेद दीवार पर भ्रष्ट तंत्र की कहानी को उकेरा गया। कहानी के साथ तस्वीर सोशल मीडिया पर अपलोड की गई। ये एक तस्वीर अपलोड नहीं हुई बल्कि अपलोड हो रही थी जनतंत्र की ताकत। ये कोई आम तस्वीर नहीं बल्कि उम्मीदों से लबरेज जागते समाज की एक आईडियल तस्वीर हैं। कल्लूसिंह के किए का कमाल देखिए। गुरुवार की सुबह से कीचड में लथपथ सरकारी जीपें सरपट दौड कर कल्लू सिंह के शौचालय तक आ पंहुची। जीप में शौचालय के भुगतान के चेक और गुलाबी अल्फाजों पर सफेदा पोतने वाली कूंची सवार थी। कल्लू के बूझे चेहरे पर अब मुस्कान लौट आई है।

(पुष्पेन्द्र वैद्य, वरिष्ठ पत्रकार। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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