जन तंत्र से भीड़ तंत्र की तरफ क्यों जाता भारत

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स्कूल के दौरान सभी राष्ट्रीय त्योहारों पर प्रभातफेरियों में एक नारा उत्साह से भर देता था। सब जोर से कहते, अनेकता में एकता… दूसरी ओर से आवाज आती… भारत की विशेषता। किताबों में जब पढ़ते भारत विविधताओं का देश है और उनके बीच में समन्वय ही इसकी सबसे बड़ी ताकत तो मन में इंद्रधनुष खिल उठता था। लेकिन अब न जाने क्यों उस इंद्रधनुष के रंग मद्धम पडऩे लगे हैं। मैं निराश नहीं हूं, लेकिन आशाओं का सूरज बचपन के कैनवास की तरह पहाड़ों का सीना चिरकर कब बाहर आएगा समझ नहीं आता।

समझ इसलिए भी नहीं आता कि मुद्दों पर भी हमारी राय बेढंगी है। अलवर में एक आदमी इसलिए कत्ल कर दिया जाता है कि वह दोस्त के साथ दो गाय लेकर आ रहा था। इतने में ही भीड़ उस पर टूट पड़ी। फिर पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया और 6 किमी दूर अस्पताल पहुंचाने में पूरे तीन घंटे लगाए। घायल रकबर को अस्पताल पहुंचाने से ज्यादा उन्हें गायों को पहले गोशाला पहुंचाना जरूरी लगा। यमराज को इससे अधिक और क्या चाहिए था। पुलिस की इस फरमाबरदारी पर उन्हें शौर्य पुरस्कार देना ही चाहिए। रकबर उर्फ अकबर का साथी असलम कहता है खानपुर से 30 हजार रुपए में दो गाय खरीद कर ला रहे थे। गोपाल के देश में किसी के लिए गो पालन भी अपराध हो गया क्या।

इसके बाद जो हुआ या जो चल रहा है, वह भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है। केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को लगता है कि ये मोदी की बढ़ती लोकप्रियता का नतीजा है। चूंकि उन्होंने धरातल पर खूब काम किए हैं, यह उसकी प्रतिक्रिया है। यानी लोग मोदीजी की साख पर बट्टा लगाने के लिए जानबूझकर इस तरह की हरकत कर रहे हैं। मेघवाल के बयान के बाद से मैं बहुत डरा हुआ हूं, प्रार्थना कर रहा हूं ईश्वर से कि अब मोदी धरातल पर कोई और काम न करें। वरना क्या पता अभी तो राह चलते लोगों को पीटा जा रहा है, काम ज्यादा हो गए तो घरों से निकालकर लोगों की सुताई होने लगेगी। वैसे दादरी में पहले ऐेसा हो भी चुका है। एक रिसर्च के मुताबिक 2015 से अब तक 68 लोग मॉब लिचिंग के कारण जान गंवा चुके हैं। पिछले एक वर्ष में ही 15 मामलों में 27 लोग भीड़ के हाथों कत्ल कर दिए गए।

तेलंगाना के भाजपा विधायक टी राजा सिंह भी पीछे नहीं हैं, उन्हें लगता है कि जब तक गो हत्या नहीं रुकेगी तब तक इस तरह की घटनाएं नहीं रुक पाएंगी। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह जिनकी जिम्मेदारी है, इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाना वे कहते हैं कि देश में सबसे बड़ी मॉब लिंचिंग 1984 में हुई थी। मैं उनकी बात से सहमत हूं, लेकिन दु:ख होता है कि वे सिक्के का एक ही हिस्सा दिखाते हैं। यह कहते हुए वे गुजरात के दंगे न जाने क्यों भूल जाते हैं। संघ के नेता इंद्रेशकुमार कहते हैं, लोग गोमांस खाना छोड़ देंगे तो ये घटनाएं रुक जाएंगी। उम्मीद है कि उन्हें पता ही होगा कि कत्लखानों के लाइसेंस और बीफ एक्सपोर्ट का अधिकार कौन देता है। और यह भी कि अलवर में जो मारा गया है वह रकबर बीफ नहीं खा रहा था।

देश के मुख्य न्यायाधीश को लगता है कि मॉब लिचिंग बढऩे का बड़ा कारण सोशल मीडिया है। कई लोग इसकी सूचनाओं पर भरोसा करते हैं और आपा खो बैठते हैं। काफी हद तक सहमत हूं इस बात से लेकिन फिर भी मुझे यह तर्क वैसा ही लगता है जैसा दुष्कर्म के मामलों में लड़कियों के छोटे कपड़ों को दोषी ठहराने की लंगड़ी दलील। राहुल गांधी कहते हैं, यह मोदी का क्रूर भारत है। तब लगता है जब तक यह सोच है तब की शायद ऐसे अपराध हमारी नियती बने रहेंगे। जनाब, ये अकेलेे मोदी का नहीं हम सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों का देश है। मानवता की जगह यदि घृणा ने ले ली है तो उसके कारण समझकर उनसे लडऩा होगा। हालांकि उनके इस ट्विट के कुछ ही देर बाद पीयूष गोयल कहने लगे कि राहुल घृणा का व्यापार कर रहे हैं।

दोनों के ट्विट से समझ आता है कि क्यों हर घटना के बाद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। पक्ष-विपक्ष दोनों एक-दूसरे के सिर ठिकरा फोड़ते हैं और ताली बजाकर बैठ जाते हैं कि हमने हिसाब बराबर कर दिया। खैर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों मॉब लिचिंग के खिलाफ कानून बनाने के लिए सरकार को कहा था। इसके बाद जीओएम का गठन हो चुका है, जिसकी सदारत खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह करेंगे। उनके साथ केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, नितिन गडक़री, रविशंकर और थावरचंद गेहलोत शामिल है।

हालांकि केंद्र के प्रयासों की हकीकत तब खुल जाती है जब खुद मंत्री कहते हैं कि कानून और व्यवस्था राज्य का मसला है। वे इसे देखें, वे एडवायजरी जारी करते हैं और फिर दोहराते हैं कि जरूरत पड़ी तो कानून बनाएंगे। पता नहीं इतनी मौत के बाद भी भीड़ पर अंकुश लगाने के लिए कानून की जरूरत कब महसूस होगी सरकार ए आलिया को। तब तक मसले निपटाने के लिए भीड़ और उनकी हरकतों पर फातिया पढऩे के लिए सियासत है ही।

(अमित मंडलोई, वरिष्ठ पत्रकार। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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