आपसी कलह से जूझ रही मध्यप्रदेश कांग्रेस

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मध्यप्रदेश में कांग्रेस इन दिनों अविश्वास, अहं और कलह के जिस जाल में उलझी हुई है उससे मुक्ति की राह नहीं खोजी गई तो लगता नहीं कि वह भाजपा को चौथी बार सरकार बनाने से रोकने के अपने मंसूबों में कामयाब हो ही जाएगी। जिन बड़े नेताओं पर मप्र में कांग्रेस की सरकार बनाने का दारोमदार है उनके अहं की पराकाष्ठा यह है कि सार्वजनिक रूप से या मीडिया से चर्चा में एक दूसरे का नाम लेने से बचते रहते हैं। यही नहीं कांग्रेस आज तक भाजपा-शिवराज की तरह फ़ुल फ़ार्म में चुनावी मोड में नजर नहीं आ सकी है।

तालमेल और अविश्वास का यह संकट बड़े नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ता और टिकट के दावेदारों तक में देखा जा सकता है। कमलनाथ समर्थकों की ही तरह सिंधिया और दिग्विजय सिंह समर्थक दावेदारों को अपने नेता पर भरोसा नहीं है कि वे टिकट दिला ही देंगे। यही वजह है कि दिग्विजय सिंह के आने पर सिंधिया समर्थक तो सिंधिया के आने पर कमलनाथ समर्थक उनकी निकटता के लिए सारी ताक़त लगाते देखे जा सकते हैं। इसे एकजुट होती कांग्रेस इसलिए भी नहीं कहा जा सकता कि यह सद्भाव सिर्फ नेता के रवाना होने तक ही नजर आता है।

सीएम फ़ेस के लिए कमलनाथ को लंबे समय से प्रोजेक्ट करने में लगे दिग्विजय सिंह फूटी आँख सिंधिया को पसंद नहीं करते यह दिल्ली तक पता है। इसी तरह सिंधिया भी कमलनाथ का नाम तक लेने से बचते रहते हैं। शनिवार को  रेसीडेंसी में हुई पत्रकार वार्ता में कांग्रेस को लेकर सिंधिया अपना मत तो जाहिर करते रहे लेकिन चौकन्ने भी थे कि कमलनाथ का नाम ज़ुबान पर न आ जाए।

राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा लंबे इंतज़ार के बाद पुनर्गठित कांग्रेस कार्यसमिति में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के नाम शामिल नहीं किए जाने को लेकर भी इनके समर्थकों-टिकट दावेदारों में बैचेनी है। संभवत: यह भी कारण है कि अब सिंधिया के आगमन पर इनके समर्थक भी हाज़िरी लगाने लगे हैं। कमलनाथ का तो समझ आता है कि वे मप्र कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हैं तो कार्य समिति में शामिल नहीं किया गया लेकिन वो दिग्विजय सिंह जिन्हें कभी राहुल गांधी का राजनीतिक सलाहकार कहा जाता था उन्हें कार्यसमिति में स्थान नहीं मिलना और जो नाम घोषित हुए उनमें (इन चार प्रमुख नेताओं में से) सिर्फ सिंधिया और अरुण यादव को ही लिया जाना यह समझने के लिये पर्याप्त है कि राहुल गांधी मप्र में कांग्रेस में किसे, कितनी तवज्जो दे रहे हैं।

संगठन में मैदानी स्तर पर देखें तो जब जो नेता आता है उसके समर्थक पोस्टर-बैनर से लेकर वाहनों की क़तार लगाने में उत्साहित नजर आते हैं। समन्वय समिति के अध्यक्ष के नाते दिग्विजय सिंह की एकता यात्रा हो या ज्योतिरादित्य की यात्रा सबके अपने समर्थक सक्रिय हो जाते हैं। प्रदेश के कार्यकर्ताओं में जान फूँकने जैसा चुनौतीपूर्ण काम कमलनाथ के जिम्मे है ज़रूर लेकिन वे प्रदेश कांग्रेस समिति की बैठकों से ही खुद को मुक्त नहीं कर पाए हैं।उन्हीं की तरह उनके बाक़ी साथी भी सत्तर पार हैं। संगठन की ढीली हालत से जैसे कमलनाथ ख़ुश नहीं हैं वैसे ही कमलनाथ के नियमों और सख्ती से प्रदेश का (भोपाल जाने वाला) कार्यकर्ता भी ख़ुश नहीं है।उनसे पहले अरुण यादव को चन्द्रिका द्विवेदी और केके मिश्रा जैसे प्रवक्ताओं ने भोपाल की चिंता से मुक्त कर रखा था।इसके विपरीत अभी जो प्रदेश समिति का हाल है वह कमलनाथ की चिंता का विषय भले ही न हो लेकिन आम कार्यकर्ता ‘एक्सपायरी डेट’ वाले हाथों में संगठन की कमान जैसे उलाहने देने से नहीं चूकते। और संभवत:यही कारण भी है कि हर आठ-पंद्रह दिन में सिंधिया को सीएम फ़ेस घोषित करने जैसी प्रायोजित माँग भी उठती रहती है।

कमलनाथ की साख दाँव पर 

एमपी पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ की तो साख दाँव पर लग गई है।यदि इस बार भी मप्र में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो असफलता का सारा ठीकरा कमलनाथ के माथे ही फूटना है। उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में तो परफ़ॉर्मेंस दिखाना ही है और लोकसभा चुनाव में अपने परंपरागत छिन्दवाड़ा संसदीय क्षेत्र को भी बचाना है।भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कमलनाथ और सिधिंया के संसदीय क्षेत्र में कमल खिलाने का संकल्प लिया है। ऐसे में कांग्रेस की ये परंपरागत सीट नहीं छिन पाए यह इन दोनों नेताओं के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न रहेगा।

प्रदेश कांग्रेस संगठन की लचर स्थिति से कमलनाथ ख़ुश नहीं हैं, ये खबरें जिस तेज़ी से आ रही हैं वह माणक अग्रवाल को मीडिया प्रभारी के दायित्व से मुक्त किए जाने के बाद सही भी साबित हो रही हैं।शोभा ओझा के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता पेनल में शामिल अभय दुबे को प्रदेश मीडिया विभाग में उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। उनके साथ भूपेंद्र गुप्ता भी सह उपाध्यक्ष बनाए गए है दायित्व से मुक्ति में अगला नंबर कोषाध्यक्ष गोविंद गोयल और संगठन उपाध्यक्ष चंद्र प्रभाष शेखर का हो सकता है। इनके कार्य-विवादास्पद ख़बरों को लेकर भी वे ख़ुश नहीं बताए जाते हैं। सागर से दो बार के विधायक रहे प्रकाश जैन पार्टी के नए कोषाध्यक्ष हो सकते हैं।

आईटी से दूरप्रदेश संगठन में ऐसे पदाधिकारी भी निशाने पर है जो फेसबुक, व्हाट्सएप के इस जमाने में इन का उपयोग करना नहीं जानते। यही नहीं न्यूज देखने, अपडेट रहने की अपेक्षा दोपहर का वक्त आराम के लिए अधिक ज़रूरी समझते हैं।

चुनावी तैयारियों में जी जान से जुटे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नेताओं की लापरवाही से खासे नाराज हैं। जिलों में संगठनात्मक कामों के लिए दी गई जवाबदारियों को पूरा ना देख नाराज कमलनाथ ने आपात बैठक बुलाकर नेताओं की जमकर खबर ली। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि या तो काम करो या फिर घर बैठ जाओं। एक एक नेता से उन्होंने वन टू वन चर्चा कर सौपे गए काम काज की समीक्षा भी कि और आधी अधूरी जानकारी मिलने पर खरीखोटी सुनाने से भी वे बाज नहीं आए। इस दौरान उन्होंने 35 जिलों में प्रभारियों की नियुक्ति भी की है, जो मंडलम और सेक्टर कमेटियों का गठन और समन्वय का काम देखेंगे।

(कीर्ति राणा, वरिष्ठ पत्रकार। ये लेखक के अपने विचार हैं)

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