पिछड़ों को आरक्षण में सामान्य वर्ग ने भी दिया है अमूल्य योगदान

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पिछड़ों को आरक्षण के नाम पर अक्सर सामान्य वर्ग के खिलाफ जहर भरने की कोशिश की जाती है, लेकिन आरक्षण के इतिहास पर नजर डालेंगे तो साफ होगा कि आरक्षण व्यवस्था को लागू करने और जारी रखने में सामान्य वर्ग का भी अमूल्य योगदान था, जबकि कई पिछड़े वर्ग के आधुनिक नेता इसकी आड़ में प्रत्यक्ष रूप से अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं और सक्षम होने के बावजूद अपनी ही जाति के कमजोर लोगों की राह का रोड़ा बने हुए हैं?

अगर बीबीसी की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो महाप्रतापी छत्रपति शिवाजी महाराज के वशंज शाहूजी महाराज ने 1902 में अपने राज्य में आरक्षण लागू कर दिया था, जो उस वक्त एक क्रांतिकारी कदम था, उन्होंने नौकरियों में पिछड़ी जाति के पचास प्रतिशत लोगों को आरक्षण देने का फैसला किया था? यह एक ऐसा निर्णय था जिसने आगे चलकर आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था करने की राह दिखाई।

उन्होंने अपने शासन क्षेत्र में सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी तरह के छूआछूत पर कानूनन रोक लगा दी थी?

कभी महात्मा गांधी ने कहा था कि वे अगला जन्म एक सफाई कर्मी के तौर पर लेना चाहेंगे, लेकिन बांसवाड़ा के नैमा समाज के चिमनलाल मालोत तो इसी जन्म में सफाई कर्मी बन गए थे! राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने आदिवासियों के उत्थान के लिए ताउम्र जो कुछ किया है, वह तो सबके सामने है?

बांसवाड़ा के पहले प्रधानमंत्री भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने जहां अन्तरजातीय विवाह किया तो रोजगार उत्प्रेरक पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी ने पिछड़े वर्ग के अनेक लोगों को उचित रोजगार प्राप्त करने में और पदोन्नति में उल्लेखनीय योगदान दिया।

मामा बालेश्वर दयाल ने तो अपना सारा जीवन ही आदिवासियों के उत्थान को समर्पित कर दिया। दलितों से नोटों के हार पहने वाले, बड़े-बड़े बंगलों में रहने वाले आधुनिक दलित नेता, क्या कर्मक्षेत्र में मामा बालेश्वर दयाल की बराबरी कर सकते हैं?

स्वामी स्वतंत्रतानंद का जन्म हुआ था बिहार में, कर्मभूमि बना वागड़। उन्होंने आजादी के दौर में पिछड़े आदिवासी छात्रों के लिए बांसवाड़ा में एक छात्रावास प्रारंभ किया, बाद में नगर पालिका के सहयोग से चार बीघा भूमि प्राप्त कर दयानंद सेवाश्रम का संचालन प्रारंभ किया। तब से अब तक वहां हजारों आदिवासी बालकों ने शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन का निर्माण किया है।

स्वामी स्वतंत्रतानंद एक अनुकरणीय व्यक्तित्व के निराले संत थे, उनका प्रमुख कार्यक्षेत्र बांसवाड़ा रहा डॉ युधिष्ठिर त्रिवेदी लिखते हैं कि… इस क्षेत्र के आदिवासियों में फैले अंधविश्वासों, टोने-टोटकों, कुरीतियों आदि को दूर करने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए। इसी तरह स्वामी शंकरानन्द वानप्रस्थी ने पिछड़ों का जीवन सुधारने के लिए जो प्रयास किए वे अविस्मरणीय हैं।

देश के कोन-कोने में सामान्य वर्ग के ऐसे अनके व्यक्तित्व मिल जाएंगे, जिन्होंने पिछड़ों के उद्धार के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। भारत में समाज सुधार, अस्पर्शता निवारण और पिछड़ों के उत्थान के अभियानों को गति देने वालों में सबसे ज्यादा सामान्य वर्ग के लोग ही थे?

अच्छी बात है कि पिछड़ों के उत्थान के प्रयास आज भी जारी हैं और कई समाजसेवी इस दिशा में सक्रिय हैं, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए- सामाजिक सद्भाव पर प्रहार, किसी भी रूप में उचित नहीं माना जा सकता है।

 

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