वर्ल्ड सोशल मीडिया डे: दिनों दिन बढता जुनून

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विश्व सोशल मीडिया दिवस पर दो प्रमुख बातों की चर्चा करना ज़रूरी समझता हूं। पहली बात, जो भी स्मार्टफोन और विडियो के नए स्टाइल को समझ लेगा वह आने वाले सालों में मीडिया की दुनिया पर राज करेगा। और दूसरी बात, सोशल मीडिया के कारण अरबों की पहुंच वाला एक स्थापित मीडिया संस्थान और एक स्टार्ट अप तकरीबन एक ही पायदान पर खड़े हैं। संचार के इतिहास में  संभवतः दुनिया में पहली बार ऐसा हुआ है।

सोशल मीडिया और स्मार्टफोन एक दूसरे पर इतने आश्रित हैं कि ये कहना मुश्किल हो गया है कि कौन किस पर आधारित है? जिस तरह पहिये के आविष्कार ने मानव सभ्यता को बदल कर रख दिया उसी तरह स्मार्टफोन आज संचार  की दुनिया में ही नहीं बल्कि मानव व्यवहार में आमूल परिवर्तन ला रहा है।

स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की पारस्परिकता को देखा जाए तो कहा जा सकता है कि अगर स्मार्टफोन इतनी सुगमता से हासिल नहीं होता तो सोशल मीडिया की पहुंच इतनी नहीं होती। पर ये भी उतना ही सच है कि सोशल मीडिया ने स्मार्टफोन के बाज़ार को इतना बड़ा बनाया है। एक के बिना दूसरे की आज कल्पना भी मुश्किल लगती है। याद कीजिये कि जब स्मार्टफोन इस तरह से उपलब्ध नहीं था तो कंटेंट के कितने प्लेटफार्म आये और सर्दियों के बादलों की तरह कुछ समय बरस कर विलुप्त हो गए। फेसबुक, वॉट्सऐप, ट्विटर, इंस्टा आदि के साथ भी वैसा हो सकता था जो हाई-5 आदि के साथ हुआ था।

कॉम स्कोर की  ताज़ा वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में 70 फीसदी लोग स्मार्टफोन के द्वारा इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। स्मार्टफ़ोन ने डेस्कटॉप और टेबलेट को कहीं पीछे छोड़ दिया है। दूर जाने की ज़रूरत नहीं हैं, इस साल आईपीएल और मौजूदा फीफा वर्ल्डकप के मैच स्मार्टफोन पर देखने वालों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है। अब स्मार्टफोन एक वैकल्पिक नहीं बल्कि कंटेंट प्राप्त करने का पसंदीदा माध्यम बन गया है। मानव सभ्यता के इतिहास में कोई भी मशीन या कलपुर्जा इतनी जल्दी इतना उपयोगी नहीं बना था। आज मोबाइल फोन शरीर के एक्स्टेंशन की तरह काम करता है। स्मार्टफोन जादू की ऐसी डिबिया बन गया है जो आपकी तमाम संचार आवश्यकताओं की पूर्ति बटन दबाते पूरी करता है।

इस सबके बीच ही कंटेंट के सबसे बड़े स्वरूप के बीच में उभरा है विडियो। फ़ास्ट फ़ूड की भांति सरल, सहज और ऐसा  छोटा विडियो जिसे देखने मे शरीर की बाकी इन्द्रियों को ज़्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। आपको बिना दिमाग पर अधिक ज़ोर डाले सूचना या मनोरंजन की प्राप्ति हो जाए ऐसा विडियो सोशल मीडिया के विस्तार का मुख्य आधार है। पारम्परिक मीडिया यानि अखबार और टीवी के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती इससे मुकाबला करने की है। अब तक का अनुभव बताता है कि स्थापित मीडिया इस मसले में उसी तरह पिछड़ रहा है जिस तरह बगीचे में अपने नाती/पोते को टहलाने वाले बुजुर्ग की ‘थोड़ी देर बाद’ होती है। थोड़ी देर बाद बुज़ुर्ग को बेंच पर बैठना लाजिमी हो जाता है।

यही हमारी दूसरी बात है। सोशल मीडिया ने कंटेंट के मैदान का समतलीकरण कर दिया है। एक लैपटॉप और स्मार्टफोन लेकर बैठा नौजवान बगीचे में टहलने वाले दस साल के उस बच्चे की तरह है, दौड़ने में जिसका मुकाबला मुहल्ले के सारे बुज़ुर्ग मिल कर भी नहीं कर पाते। सूचनाओं के आदान प्रदान के व्यापक लोकतंत्रीकरण के युग में अब सिर्फ साधनों के बल पर आप राज नहीं कर सकते। कंटेंट के नए और बेहतर विचार और आइडिया को सही तरह अंजाम तक पहुंचाने की क़ाबलियत रखने वाली छोटी -छोटी टीमें कई बड़े संस्थानों को धूल चटा रहीं हैं।

पद और प्रतिष्ठाओं के मद में डूबे ख्यातिनाम पत्रकार अपना मस्तूल डाले हुए जहाज के केबिन में बैठे अभी इतिहास की गौरव गाथाओं और किस्से-कहानियों में डूबे हुए हैं। उन्हें मालूम ही नहीं पड़ रहा कि मीडिया की कश्ती किसी और किनारे की तलाश में आगे निकल चुकी है। ये नए नाविक मीडिया के महासमुद्र के बीचों बीच पहुंचकर क्षितिज पर उगते हुए सूरज की सुन्दर छटा और जल में पड़कर आभा बिखेरती रश्मियों का आनंद ले रहे हैं।

विश्व सोशल मीडिया दिवस के दिन इन नए साहसी नाविक पत्रकारों का स्वागत और अभिनन्दन।

 

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