जीएसटी को हुआ पूरा एक साल

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भारत की संसद ने गत 30 जून की रात 12 बजे घंटा बजा कर एक देश एक टैक्स की तथाकथित अच्छी और सरल अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का स्वागत किया था. तत्काल लागू करने की जल्दबाजी में हुआ यह कि बीते एक बरस में जीएसटी काउन्सिल की 27 बैठकें करनी पड़ीं मतलब महीने में दो बार से भी ज्यादा ! देश भर के व्यापारियों को बिना अतिरिक्त खर्चे के रोलेरकोस्टर की सवारी का मज़ा मिला जिसमें एक क्षण तो आप धरती की ज़द में होते हैं तो दूसरे ही क्षण आप आसमान की सैर कर रहे होते हैं. इस सरल टैक्स व्यवस्था की सरलता का आलम यह है कि स्वयं कानून का परिपालन करने वाले अधिकारी ही इसे नहीं समझ पा रहे हैं तो फिर एक गाँव की नुक्कड़ पर परचून बेचने वाले की क्या बात करें ?

एक्ट और रूल्स में किये जाने वाले परिवर्तनों को एक बार छोड़ भी दें तो आलम यह है कि केंद्रीय, प्रांतीय, केंद्र शासित प्रदेश और समेकित कर में हर तीसरे दिन एक नोटिफिकेशन आ जाता है जिसका हिसाब स्वयं वकील नहीं रख पा रहे हैं तो उद्यमियों की क्या कहें ? फायदों का हाल यह है कि खुद प्रधानमन्त्री के प्रिय शहर सूरत में, जो एक बरस पहले तक देश में वस्त्र उद्योग का सिरमौर होता था, लगभग 30 फ़ीसदी कामगार काम छोड़ के अपने गाँव जा चुके हैं और पिछले एक बरस में वहां कोई नया वृहद कारखाना स्थापित नहीं हो पाया है. युवा उद्यमी इस अनिर्णय के माहौल में उद्यमिता से बच कर नौकरी में ही अपनी भलाई देख रहे हैं.

देश में पुराने करों की ही तर्ज पर एक साल के भीतर ही एक समानांतर व्यवस्था ने फिर जन्म लिया है जहाँ आप बिना टैक्स के सस्ता माल ले सकते हैं और वह आपके द्वार तक भी पहुँच जाता है. सर्विस पर 18 फ़ीसदी टैक्स ने देश में सेवा के विस्तार पर एक अलग तरह का कर्फ्यू लगा रखा है जिसमें छोटे स्तर का आदमी छोटा ही बना रहना चाहता है ताकि टैक्स की मार से बचा रह सके. पूरे देश में ऐसे अकाउंटेंट का अकाल सा है जो रिटर्न की जिम्मेदारी लें और जो ले रहे हैं अनाप-शनाप पैसे मांगते हैं. बिना अकाउंटेंट रिटर्न मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. मझोले स्तर के चार्टर्ड अकाउंटेंट इस काम से बच रहे हैं क्योंकि काम के मुताबिक़ दाम नहीं मिलते.

आज जब हम जीएसटी की पहली सालगिरह मनाने जा रहे हैं तो प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि अब व्यापारी के मन-की-बात सुनें. अफसरों की तो बहुत सुन ली. इस टैक्स के फायदे हज़ार हैं किन्तु देह ही ना रही तो पोषक आहार का फायदा ?

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