जम्मू-कश्मीर मे 8वीं बार राज्यपाल शासन लागू हुआ, राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं?

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कुमार राकेश

जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद राज्यपाल शासन लगा दिया गया है. पिछले 40 सालों में आठवीं बार राज्य में राज्यपाल शासन लगाया गया है. वर्तमान राज्यपाल एन एन वोहरा के कार्यकाल में यह चौथा मौका है जब राज्य में राज्यपाल शासन लगाया गया है. पूर्व नौकरशाह वोहरा 25 जून 2008 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने थे. मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी ने यह कहते हुए कि ‘जम्मू-कश्मीर में बढ़ते कट्टरपंथ और चरमपंथ के चलते सरकार में बने रहना मुश्किल हो गया था’ पीडीपी के साथ राज्य में क़रीब तीन साल तक गठबंधन में रहने के बाद समर्थन वापसी की घोषणा कर दी.

राज्यपाल शासन क्यों? देश के अन्य सभी राज्यों में राजनीतिक दलों के सरकार नहीं बना पाने या राज्य सरकारों के विफल होने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर में मामला थोड़ा अलग है. यहां राष्ट्रपति शासन नहीं बल्कि राज्यपाल शासन लगाया जाता है. जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत राज्य में छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लागू किया जाता है, हालांकि देश के राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद ही ऐसा किया जा सकता है. भारत के संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त है. यह देश का एकमात्र राज्य है जिसके पास अपना ख़ुद का संविधान और अधिनियम हैं. देश के अन्य राज्यों में राष्ट्रपति शासन संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत लगाया जाता है. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति से मंज़ूरी मिलने के बाद छह महीने तक राज्यपाल शासन लगाया जाता है. इस दौरान विधानसभा या तो निलंबित रहती है या इसे भंग कर दिया जाता है. अगर इन छह महीनों के भीतर राज्य में संवैधानिक तंत्र बहाल नहीं हो जाता, तब राज्यपाल शासन की समय सीमा को फिर बढ़ा दिया जाता है. जम्मू-कश्मीर में पहली बार 1977 में राज्यपाल शासन लगाया गया था. तब कांग्रेस ने शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस से अपना समर्थन वापल ले लिया था.

धारा 370 के तहत विशेष दर्जा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त है. आज़ादी के समय जम्मू-कश्मीर भारत में शामिल नहीं था. उसके सामने विकल्प थे कि वो पाकिस्तान में शामिल हो जाए या हिंदुस्तान में. कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनता पाकिस्तान में शामिल होना चाहती थी लेकिन राज्य के अंतिम शासक महाराज हरिसिंह का झुकाव भारत की तरफ़ था. उन्होंने भारत के साथ ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ ऐक्सेशन’ दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए और इसके बाद जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा दिया गया. जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद वहां मुख्यमंत्री की बजाय प्रधानमंत्री और राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत होता था और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को वहां का प्रधानमंत्री बनवा दिया. यह सिलसिला 1965 तक चला. तब धारा 370 में बदलाव किए गए और इसके बाद से यहां भी देश के अन्य राज्यों की तरह राज्यपाल और मुख्यमंत्री होने लगे. अनुच्छेद 370 के तहत ही जम्मू-कश्मीर का अपना एक अलग झंडा और प्रतीक चिह्न भी है.

केंद्र कब कब दे सकता है दखल? भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में कुछ विशेष मामलों में ही राज्यपाल शासन लगा सकती है. केवल युद्ध और बाहरी आक्रमण के मामले में ही राज्य में आपातकाल लगाया जा सकता है. राज्य में कोई अंदरुनी गड़बड़ियां भी हों तो केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में आपातकाल नहीं लगा सकती है. केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में केवल रक्षा, विदेश नीति, वित्त और संचार के मामलों में ही दखल दे सकती है. पिछली बार मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद आठ जनवरी 2016 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हुआ था. उस दौरान पीडीपी और भाजपा ने कुछ समय के लिए सरकार गठन को टालने का निर्णय किया था.

आठ मौकों पर कब कब लगा राज्यपाल शासन पहली बारः

26 मार्च 1977 से 9 जुलाई 1977 तक. 105 दिनों के लिए.

दूसरी बारः 6 मार्च 1986 से 7 नवंबर 1986 तक. 246 दिनों के लिए.

तीसरी बारः 19 जनवरी 1990 से 9 अक्तूबर 1996 तक. छह साल 264 दिनों के लिए.

चौथी बारः 18 अक्तूबर 2002 से 2 नवंबर 2002 तक. 15 दिनों के लिए.

पांचवी बारः 11 जुलाई 2008 से 5 जनवरी 2009 तक. 178 दिनों के लिए.

छठी बारः 9 जनवरी 2015 से 1 मार्च 2015 तक. 51 दिनों के लिए.

सातवीं बारः 8 जनवरी 2016 से 4 अप्रैल 2016 तक. 87 दिनों के लिए.

आठवीं बारः 19 जून 2018 से अब तक.

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